उत्तराखंड

नियम ताक पर रख उच्च हिमालयी क्षेत्र में पहुंच रहे ट्रैकर, बीते आठ वर्षों में इन रूट पर फंस चुके हैं करीब 12 दल

केदारनाथ क्षेत्र ऐसे कई जोखिम वाले ट्रैक रूट मौजूद हैं, जिन पर बिना जानकारी व सुरक्षा उपायों के जाना खतरे से खाली नहीं। इनमें कई तो 18000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर हैं। बावजूद इसके बड़ी संख्या में ट्रैकर नियमों को ताक पर रखकर बिना अनुमति के ही यहां पहुंच जाते हैं। इसकी खबर न तो प्रशासन को होती है और जिम्मेदार विभाग वन विभाग को ही।

आठ ट्रैकर को जान भी गंवानी पड़ी

बीते आठ वर्षों की ही बात करें तो 12 से अधिक ट्रैकिंग दल मौसम का मिजाज बिगडऩे के कारण इन ट्रैक रूट पर फंस चुके हैं। इस दौरान आठ ट्रैकर को जान भी गंवानी पड़ी। लेकिन, इन घटनाओं से प्रशासन व वन विभाग ने सबक लिया हो, लगता नहीं है।

उस पर ये जिम्मेदार एजेंसियों को सूचना दिए बगैर ही ट्रैकिंग पर निकल पड़ते हैं। प्रशासन, पुलिस, पर्यटन विभाग व वन विभाग को इनके बारे में सूचना तब मिलती है, जब ये स्वयं किसी ट्रैक रूट पर फंसे होने या रास्ता भटक जाने की जानकारी देते हैं। लेकिन, सही लोकेशन पता न होने के कारण प्रशासन के लिए उन्हें रेस्क्यू करना भी चुनौती बन जाता है।जबकि एक सदस्य की मौत भी हो गई थी। सभी ट्रैकर भारतीय रेलवे के कर्मचारी थे। वायु सेना के प्रयासों से इनकी जान बच पाई। जून 2017 में भी 12-सदस्यीय एक दल इसी रूट पर फंस गया था।

ट्रैकिंग के लिए नियम

प्रशासन व पुलिस को भी अपने ट्रैकिंग रूट की पूरी जानकारी देनी होती है। साथ ही उच्च हिमालयी क्षेत्र में जाने के लिए ट्रैकर के पास कुशल गाइड, पर्याप्त संसाधन, जरूरी कपड़े व दवाएं, टेंट आदि भी होने चाहिए। इसके बाद ही वन विभाग के कार्यालय में शुल्क जमा करने के बाद उसे ट्रैकिंग की अनुमति दी जाती है।

केदारघाटी में 15 हजार फीट से ऊंचे ट्रैक

मध्यमेश्वर-पांडवसेरा, मध्यमेश्वर-पनपतिया, मध्यमेश्वर-पनपतिया-बदरीनाथ, मध्यमेश्वर-रुद्रनाथ, केदारनाथ-बासुकीताल-चौखंभा, केदारनाथ-बासुकीताल-गंगोत्री और केदारनाथ-त्रियुगीनारायण-पंवालीकांठा।

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