उत्तराखंड की संस्कृति एवं परंपराएं तो समृद्ध हैं ही साथ ही यहां पहाड़ी दालें भी पौष्टिकता से परिपूर्ण हैं। ये दालें जैविक होने के साथ ही स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं। यही कारण है कि देशभर में पहाड़ी दालों की मांग लगातार बढ़ रही है।
राजमा, गहथ (कुलथ), उड़द, तोर, लोबिया, काले भट, नौरंगी (रयांस), सफेद छेमी आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं और इन्हें मौसम के हिसाब से उपयोग में लाया जाता है। उत्तराखंड और दूसरे राज्यों के लोग चकराता, जोशीमठ, हर्षिल और मुनस्यारी की राजमा, गथवाणी और तोर की दाल का सूप खूब पसंद कर रहे हैं। ये दालें आयरन, विटामिन से भी भरपूर होती हैं। इन दालों के सेवन करने से केवल ठंड से बचाव नहीं होता, बल्कि पथरी जैसे रोग का इलाज और प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।को पहाड़ में धौत के नाम से जाना जाता है। इसका रस सर्दी में यह काफी फायदेमंद होता है। इसके अलावा पथरी के इलाज में भी यह दाल रामबाण मानी जाती है। इस दाल में कार्बोहाइड्रेट, वसा, रेशा, खनिज और कैल्शियम भी होता है। इससे गथ्वाणी, फाणु, पटुंगी, भरवा परांठे, खिचड़ी आदि व्यंजन बनाए जाते हैं।गहथ को पहाड़ में धौत के नाम से जाना जाता है। इसका रस सर्दी में यह काफी फायदेमंद होता है। इसके अलावा पथरी के इलाज में भी यह दाल रामबाण मानी जाती है। इस दाल में कार्बोहाइड्रेट, वसा, रेशा, खनिज और कैल्शियम भी होता है। इससे गथ्वाणी, फाणु, पटुंगी, भरवा परांठे, खिचड़ी आदि व्यंजन बनाए जाते हैं।