कुछ साल पहले तक पारंपरिक मुगलकालीन डिजाइन वाले कालीनों की अधिक मांग थी। भारतीय कालीन माडर्न, सिल्क और नेचुरल नाम से वैश्विक बाजार में छा रहे हैं। विभिन्न कालीन निर्माता कंपनियां इन्हीं के नाम पर अलग-अलग डिजाइन वाले कालीन तैयार कर रही हैं। एक्सपो मार्ट भदोही में चार दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कालीन मेले में विदेशी आयातकों से मिले रुझानों व उनकी पसंद से पता चलता है कि भारतीय कालीनों की विश्व बाजार में धाक है। इसकी वजह यह है कि यहां के कालीन अब दूसरे देशों की नकल करके नहीं बन रहे, बल्कि अपनी डिजाइन और प्राकृतिक रंगों के प्रयोग से बन रहे हैं।
भारतीय कालीन विदेशी कालीनों की अपेक्षा ज्यादा टिकाऊ होते हैं।अंतरराष्ट्रीय मेले में आकर्षण का केंद्र रहे सिल्क के कालीन : एक्सपो मार्ट में लगे मेले में सवा फीट गुणा डेढ़ फीट के कालीन के ऐसे पीस भी हैं जिनकी कीमत करीब डेढ़ लाख रुपये है। इस छोटे से कालीन की विशेषता यह है कि इसके एक वर्ग इंच में 7,225 गांठें हैं। इस कश्मीरी कालीन में प्राकृतिक रंगों से सिल्क के धागों को रंगा गया है। पानी न पड़े तो सौ साल तक कालीन ऐसा ही रहेगा। मेले में श्रीनगर के अहमदनगर की फिरोजसंस एक्सपोर्ट के स्टाल पर लगभग 50 करोड़ रुपये के विभिन्न डिजाइन वाले सिल्क के कालीन थे।
आर्ट कारपेट डी ओरिएंट के स्टाल पर सिल्क का ही डेढ़ फीट गुणा सवा दो फीट का कालीन 45 लाख रुपये का है। एक इंच में जितनी गांठ, उतना ज्यादा दाम : सिल्क के कालीन की खासियत यह कि इसकी बुनाई सिल्क के पतले धागों से होती है। जितना पतला धागा होगा, उतनी ज्यादा गांठें होती हैं। ऐसे कालीनों में एक इंच में जितनी ज्यादा गांठें होती हैं, उसकी कीमत उतनी ज्यादा रहती है। मसलन एक इंच में 7,225 गांठों वाली कालीन उम्दा क्वालिटी का माना जाएगा। ऐसे कालीनों को भारत सरकार के हथकरघा विभाग की टीम प्रमाणित करती है और हालमार्क भी लगाती है।
भदोही के आर्ट कारपेट डी ओरिएंट के चेयरमैन सीईपीसी व निदेशक उमर हमीद ने बताया कि प्रदर्शनी में सिल्क से बने तबरेज कालीन रखे गए। डेढ़ गुणा सवा दो फीट का 45 लाख रुपये का कालीन हमने ही तैयार कराया। हमें सात गुणा 10 फीट के कालीन के आर्डर जर्मनी से ज्यादा मिले हैं। मार्ट में सिल्क कालीन के आठ स्टाल थे। उन्हें लगभग 80 करोड़ के कालीनों के आर्डर मिले हैं। आर्डर की सप्लाई आठ महीने में कर देनी है।