परिवादी त्रिवेणी एवं परिवाद पत्र के कथन इस प्रकार है कि परिवादी की साईं मंदिर राजपुर रोड,पर फूल प्रसाद की दुकान थी। और अभियुक्त शिवकुमार काफी समय से दुकान में आने जाने से दोनों में काफी जान पहचान हो गई थी।अभियुक्त ने बताया कि वह प्रॉपर्टी खरीद रहा है 3.5 लाख रुपए की जरूरत है। परिवादी का कहना है कि करीब 1 वर्ष पूर्व उसने अलग-अलग किस्तों में 3,50,000/ रुपए अपनी दुकान पर शिवकुमार को दिए थे। उपर्युक्त पैसों की वापसी अभियुक्त ने जल्दी से जल्दी करने को कहा लेकिन काफी समय व्यतीत होने पर जब शिवकुमार ने पैसे नहीं लौटा तो परिवादी के मांग करने पर शिवकुमार ने एक 2,50,000 रुपए का चेक परिवादी को दिया था और परिवादी ने अपने बैंक अकाउंट में जमा किया। परंतु शिव कुमार के अकाउंट में पर्याप्त धनराशि ना होने के कारण चेक बाउंस हो गया वही चेक डिशऑनर होने की सूचना पर परिवादी त्रिवेणी द्वारा दिनांक 11.08.2011 तो अपने अधिवक्ता शिवकुमार के माध्यम से पैसे वापसी हेतु शिव कुमार को रजिस्टर्ड डाक से नोटिस भेजा गया परंतु शिवकुमार ने नोटिस लेने से इनकार कर दिया।
शिव कुमार द्वारा कथन किया गया कि” मैंने परिवादी को कोई चेक नहीं दिया था।मैंने मुन्नीलाल नाम के व्यक्ति को चेक सिक्योरिटी के तौर पर दिया था। चेक मेरे हस्तलेख व हस्ताक्षर में नहीं है।मुझे कोई नोटिस नहीं मिला।मेरे चेक कर दुरुप्रयोग किया गया है।”
अधिनियम के अंतर्गत अपराध हेतु परिवादी को यह साबित करना होता है कि:-
(1) प्रश्न पत्र चेक को परिवादी द्वारा 90 दिन के अंदर बैंक में भुगतान हेतु प्रस्तुत किया गया हो।
(2) क्या परिवादी द्वारा शिव कुमार को लिखित नोटिस दिया गया
(3) क्या शिव कुमार द्वारा गठित नोटिस की प्राप्ति के बावजूद 15 दिन के अंदर भुगतान की राशि अदा नहीं की गई।
शिवकुमार ने अपने बचाव में स्वयं डी० डब्लू० के रूप में न्यायालय में परिचित कराया है और मुख्य परीक्षा में मुख्य रूप से यह कथन किया गया है कि मैं परिवादी त्रिवेणी को नहीं जानता उनका यह भी कहना है कि परिवादी को मैंने इस मुकदमे के बाद ही देखा था। शिव कुमार का कहना है कि उसने परिवादी से 3,50,000/- रुपए की धनराशि कभी नहीं ली। पत्र वाली पर शामिल तक मेरे खाते का है लेकिन यह चेक मेरे द्वारा नहीं भरा गया नहीं मेरे इस पर हस्ताक्षर है। उसने कभी भी कोई लेन-देन नहीं किया।
शिवकुमार को फर्जीवाड़ा से बचाया अधिवक्ता अंबर कोटनाला ने !अभियुक्त शिवकुमार को परक्रमय लिखित अधिनियम 1881 की धारा 138 के दंडनीय अपराध के आरोप से संदेह का लाभ देकर दोषमुक्त किया जाता है। अभियुक्त जमानत पर है उसके द्वारा पूर्व में निष्पादित बंधपत्र को निरस्त किया जाता है तथा उसके जमीनान को उनकी जमानत के दायित्व से उनमोचित किया जाता है।