जीएसटी बिल के प्रति लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार तमाम जागरूकता अभियान चला रही है। इसके लिए बिल लाओ, इनाम पाओ योजना भी चलाई जा रही है। इसके इतर विभाग भी लगातार सत्यापन में जुटा है। बावजूद इसके राजधानी में स्कूल यूनिफार्म बिक्री में करोड़ों की जीएसटी चोरी की जा रही है। अभिभावक जीएसटी बिल मांगते हैं तो उन्हें एक कैश मेमो थमा दिया जाता है। देखिये कैसे हो रहा है इस जीएसटी चोरी से सरकार को नुकसान।
अमर उजाला टीम ने राजधानी की कई यूनिफार्म बेचने वाली दुकानों की पड़ताल की। राजपुर रोड स्थित एक यूनिफार्म की दुकान पर भारी भीड़ है। यहां मशक्कत के बाद बच्चे की यूनिफार्म खरीदकर बाहर निकलने वाले अभिभावकों से जब बिल मांगा गया तो उन्होंने कहा कि कोई बिल नहीं दिया गया। दो-चार ने जिद की तो उन्हें एक कैश मेमो दिया गया, जिस पर जीएसटी का कोई जिक्र नहीं है।
अभिभावकों का कहना है कि वह यूनिफार्म के दामों में कुछ डिस्काउंट की मांग करते हैं तो उन्हें कहा जाता है कि, जो रेट तय है वही देना होगा। अगर आप कम देना भी चाहोगे तो यूनिफार्म विक्रेता साफ इंकार कर देगा। इसके पीछे एक वजह यह भी है कि यूनिफार्म विक्रेताओं का स्कूलों के साथ टाइअप है। स्कूल ने जिस दुकान का नाम बताया है, उसके अलावा कहीं भी वह ड्रेस नहीं मिलती। अभिभावकों को इस वजह से दुकानदार और स्कूल की मनमानी का शिकार होना पड़ रहा है।
चकराता रोड, बिंदाल पुल के निकट स्थित एक यूनिफार्म की दुकान पर आए अभिभावकों से जब पूछा गया कि आपने जो यूनिफार्म खरीदी है, उस पर कितना जीएसटी कटा है तो उनके पास कोई जवाब नहीं था। ना ही उन्हें यह पता कि जीएसटी कितना है, जबकि नियमानुसार, अगर कोई ड्रेस एक हजार रुपये कीमत तक की है, उस पर पांच प्रतिशत और इससे अधिक कीमत वाली पर 12 प्रतिशत जीएसटी लगता है।
राजधानी में जीएसटी चोरी के इस खेल से सरकार को करोड़ों के नुकसान का अनुमान है। कोरोना महामारी के बाद सर्दियों में इस साल पहली बार स्कूल खुले हैं। दो साल के गैप के बाद बच्चों को यूनिफार्म की जरूरत पड़ रही है। सर्दियों के ब्लेजर से लेकर ट्रैक सूट की कीमत एक हजार रुपये से ऊपर ही है। यूनिफार्म की दुकानों पर दिनभर भीड़ जमा है। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि हर साल करोड़ों की टैक्स चोरी हो रही है।