
आदि गुरु शंकराचार्य की तपस्थली प्रलय के मुहाने पर पहुंच चुकी है… जोशीमठ शहर कई मायने में खास है। इसे गेटवे आफ हिमालय कहा जाता है… कत्यूरी राजाओं ने अपनी राजधानी बनाने के लिए जोशीमठ को ही चुना था… कालांतर में यहां से विश्वभर में धर्म और अध्यात्म की गंगा प्रवाहित हुई… लेकिन अब इस धरती पर अस्तित्व का खतरा मंडरा रहा है। जोशीमठ में जमीन फट रही है… बाशिंदों के आशियानें उनकी आंखों के सामने जमींदोज हो रहे हैं।
आज जोशीमठ प्रकृति की मार से कराह रहा है। लेकिन उसकी पीड़ा हरने की जरूरत किसी ने नहीं समझी। बर्फबारी के बाद यहां के हालात और ज्यादा खतरनाक हो गए हैं। कुछ क्षेत्रों में दरारें चौड़ी हो रही हैं। बदरीनाथ और मलारी हाईवे भी भूधंसाव की जद में आया है। इस पर भी तीन स्थानों पर दरारें चौड़ी हुई हैं।
बदरीनाथ हाईवे पर डाक बंगले के पास नई दरारें आई हैं। जोशीमठ-औली रोड भी कई स्थानों पर भी धंसी है। भूधंसाव के कारण जोशीमठ-औली रोपवे भी बंद कर दिया गया है। अब तक जोशीमठ से 334 प्रभावित परिवारों को विस्थापित किया जा चुका है। यहां अभी तक 863 भवनों पर दरारें आई हैं। वहीं असुरक्षित घोषित हो चुके दो होटलों समेत 20 भवनों की डिस्मेंटलिंग का काम जारी है।
अपर सचिव आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास डा आनंद श्रीवास्तव के अनुसार जोशीमठ शहर पुराने भूस्खलन क्षेत्र के पर बसा है। ऐसे क्षेत्रों में जल निस्तारण की उचित व्यवस्था न होने की स्थिति में भूमि में समाने वाले पानी के साथ मिट्टी अन्य पानी के साथ बह जाने से कई बार भूधंसाव की स्थिति उत्पन्न होती है। वर्तमान में जोशीमठ में भी ऐसा ही हो रहा है।