उत्तराखंड

सुरक्षित तो रहेगी ढाई दिन की सरस्वती की देह पर कभी देख नहीं सकेंगे माता-पिता

बच्ची का शव कॉलेज संग्रहालय में रखा जाएगा। शव को लंबे समय तक संरक्षित रखने के लिए उस पर थर्मालीन तरल का लेप लगाया जाएगा।

कहते हैं कि मां की ममता से बड़ा इस दुनिया में कुछ भी नहीं होता है। लेकिन नैतिकता की प्रेरणा कभी-कभी इतनी प्रबल होती है कि मां की ममता पीछे छूट जाती है। हरिद्वार जिले के पुरुषोत्तम नगर निवासी मगन देवी और उनके पति राम मेहर ने आज समाज के सामने एक ऐसा ही उदाहरण पेश किया है। आठ दिसंबर यानि रविवार को दून अस्पताल में जन्मी बच्ची की मौत होने के बाद दिवंगत की मां मगन और पिता राम ने बुधवार को दून मेडिकल कॉलेज में बच्ची का देहदान कर दिया।

उन्हें बच्ची के देहदान की प्रेरणा उनके मोहल्ले के डॉक्टर राजेंद्र सैनी से मिली है। बच्ची की उम्र महज ढाई दिन ही थी। चिकित्सकों के मुताबिक देश में इतनी कम उम्र में होने वाला यह पहला देहदान है। इससे पहले निम्नतम सात दिन के बच्चे का देहदान किया गया था। देहदान से पूर्व बच्ची का नाम सरस्वती रखा गया है।

एनाटॉमी विभाग के अध्यक्ष डॉ. एमके पंत बताते हैं कि सरस्वती के शव को कॉलेज के संग्रहालय में रखा जाएगा। इसको यहां पर लंबे समय तक संरक्षित रखा जाएगा। एनाटॉमी विभाग के अध्यक्ष डॉ. एमके पंत ने बताया कि कॉलेज के संग्रहालय में रखे जाने वाले शवाें के दर्शन के लिए उनके परिवार को अनुमति नहीं दी जाती है।

इससे परिवार के लोग मानसिक पीड़ा में जा सकते हैं। दधीचि देहदान समिति के अध्यक्ष डॉ. मुकेश गोयल ने बताया कि समिति की ओर से यह 14वां देहदान कराया गया है। दून मेडिकल कॉलेज के एनाटाॅमी विभाग के अध्यक्ष डॉ. एमके पंत और सहायक प्रोफेसर डॉ. राजेश कुमार मार्य ने बताया कि दून मेडिकल कॉलेज में अब तक कुल 33 शवों का देहदान हो चुका है।

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