
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिथौरागढ़ के गुंजी गांव के दौरे से गढ़वाल मंडल के सीमांत क्षेत्र के लोगों में कैलाश मानसरोवर के प्राचीन मार्ग के आबाद होने की आस जगी है। उन्हें उम्मीद है कि अब उनकी छह दशक पुरानी मांग सुनी जाएगी।
उल्लेखनीय है कि नीति और मलारीघाटी के लोग घाटी से मानसरोवर यात्रा शुरू करने और सीमा दर्शन की मांग को लेकर गत वर्ष प्रधानमंत्री को माणा गांव के दौरे के दौरान ज्ञापन सौंप चुके हैं, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है।
बदरीनाथ से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है माणा गांव जो कभी देश के अंतिम गांव के रूप में जाना जाता था। अब वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत पहले गांव के रूप में पहचान बना रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू करने के साथ ही सीमा दर्शन की अनुमति दी जाती है तो इससे सही मायनों में क्षेत्र के लोग आर्थिक रूप से पहली पंक्ति में शामिल हो जाएंगे।
माणा गांव धार्मिक, आध्यात्मिक पर्यटन एवं सामाजिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है, इसके बावजूद गांव में सुविधाओं का अभाव है। 1962 में भारत चीन युद्ध के बाद माणा व नीति घाटी के लोगों का तिब्बत से व्यापारिक संबंध समाप्त हो गया और कैलाश मानसरोवर यात्रा भी इन मार्गों से पूर्ण रूप से बंद हो गई। तब से घाटियों के लोग लगातार सरकारों से कैलाश मानसरोवर की यात्रा के पुराने मार्ग को दोबारा शुरू करने की मांग कर रहे हैं।