उत्तराखंड

अमेरिका में भारत-पाकिस्तान बीसमबीस, लेकिन इस खेल के विस्तार पर उठते हैं कुछ सवाल

 क्रिकेट के आनंद को उन देशों में ले जाया जा रहा है, जहां इस खेल को खेलने की कोई लगन, लगाव और लौ नहीं रही है।

आखिर न्यूयॉर्क के नासाऊ काउंटी मैदान पर भारत और पाकिस्तान के बीच बीसमबीस विश्व कप में क्रिकेट का मैच ही हुआ। एक को ही जीतना था, सो भारत जीत भी गया। चिर प्रतिद्वंद्वी के बीच मैच कांटे का होना था, सो भी हुआ। क्रिकेट खेलने वाले पारंपरिक देशों से अलग, यह बीसमबीस विश्वकप अमेरिका और उसके आसपास के छोटे-छोटे वेस्टइंडीज द्वीपों में खेला जा रहा है। क्रिकेट की लोकप्रियता को भुनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी), खेल के पारंपरिक देशों से अलग उसे दूसरे देशों में ले जाने में लगा है।

21वीं सदी की शुरुआत में क्रिकेट के पांच दिवसीय टेस्ट मैच प्रारूप को बचाने की कवायद चल रही थी। टेस्ट मैच को समय और खर्च की बर्बादी माना जा रहा था और बदलाव की बातें उठ रही थीं। कम समय में कैसे भरपूर मनोरंजन दिया जाए? कैसे बाजार में क्रिकेट के प्रति उम्मीदें जगाई जाएं? बीसमबीस या इससे जुड़ी कम ओवर की क्रिकेट इंग्लैंड की गर्मियों में पिछली शताब्दी के आखिर में खेली जाने लगी थी। इंग्लैंड की गर्मी में दिन खासे लंबे हो जाते हैं, इसलिए काम के बाद शाम को कम समय की क्रिकेट लोकप्रिय होने लगी थी। सन नब्बे के आखिर में अपन ने भी बीसमबीस खेलने का उत्साह और आनंद इंग्लैंड में देख-समझ लिया था। आईसीसी ने लोगों के उत्साह व बाजार का ध्यान रखते हुए विश्व स्तर की बीसमबीस स्पर्धा कराने का खाका बनाया। पहला टी-20 विश्वकप 2007 में दक्षिण अफ्रीका में हुआ , जिसमें भारत विजेता बना। विश्वकप में जीत से भारतीय क्रिकेट प्रेमियों ने अपने खेल के जुनून से विश्व क्रिकेट की आर्थिकी ही बदल दी। फिर आईपीएल दुनिया की सबसे लोकप्रिय लीग हो गई। अब हर दो साल में बीसमबीस और विश्व टेस्ट मैच स्पर्धा होने लगी है। एकदिवसीय विश्वकप हर चार साल में ही हो रहा है। यानी बीसमबीस की लोकप्रियता ने भी टेस्ट क्रिकेट में वही जोश, उत्साह और रोमांच भर दिया, जो सत्तर के दशक में एकदिवसीय क्रिकेट ने भरा था।    

वेस्टइंडीज में होने वाले विश्वकप को इस बार ज्यादा देशों में ले जाकर अमेरिका में भी मैच कराने का सोचा गया। अमेरिका में रह रहे प्रवासी उपमहाद्वीप के क्रिकेट प्रेम को भुनाने की कोशिश की गई। शुरुआती मैच अमेरिका में हुए। अमेरिका की जिस टीम ने पाकिस्तान को हराया, उसमें छह भारत व दो पाकिस्तान के खिलाड़ी एच-1बी वीजा पर वहां रह रहे हैं। अमेरिका से कुछ घंटों की ही हवाई दूरी पर वेस्टइंडीज के द्वीपों में अंतिम आठ देश विश्वकप विजेता होने के लिए खेलेंगे। खेल के इस प्रारूप की लोकप्रियता ने क्रिकेट के प्रचार-प्रसार की संभावनाओं का आकाश खोल दिया है।

अमेरिका में बीसमबीस विश्वकप मैच कराने के लिए कुछ जरूरी साजो-सामान जुटाने थे। सबसे जरूरी पिच, दर्शकों के बैठकर मजा लेने की सुविधाएं और दुनिया भर में टीवी पर मैच दिखाए जाने की समय-सारणी। विशेषज्ञ के कहने पर ऑस्ट्रेलिया से कच्चा माल मंगाया गया।  क्रिकेट की दस ‘ड्रॉप-इन’ पिच कुछ ही महीनों में तैयार की गई। हालांकि पिचों की वजह से अमेरिका में हुए सभी मैच में जो मजा किरकिरा हुआ, उसका कारण बिना मिट्टी-घास जमने का समय दिए, ड्रॉप की गई पिच रहीं। जो बीसमबीस खेल के चौके-छक्कों के लिए अनुकूल नहीं थीं।

तेजी में दर्शकों के बैठने की सुविधाएं बनाना तो अमेरिका में मुश्किल नहीं था, लेकिन पिच के अलावा मैदान की घास को भी जमने में समय लगना ही था। इसलिए आउटफील्ड धीमी और कुछ जगह ऊबड़-खाबड़ भी रही। मगर अमेरिकियों की भी कमर तोड़ने वाली तो विश्वकप मैच के टिकट और गाड़ियों की पार्किंग थी। इन मैचों को देखने वाले तो प्रवासी भारतीय या उपमहाद्वीप के लोग थे। मुद्दा मैच के टीवी प्रसारण के समय का था। उपमहाद्वीप में शाम को दिखाया जाने वाला मैच अमेरिका में सुबह कराना पड़ा। इस असुविधा से अमेरिकियों को गुजरना ही था। खैर, क्रिकेट का दुनिया के सबसे धनी और बड़े लोकतंत्र में पैर पसारना ही शुभ शुरुआत है। अमेरिका ही वह देश है, जहां समय को पैसे से तौला जाता है। इसलिए बीसमबीस से समय बचाते हुए क्रिकेट से पैसा कमाया जाएगा। उस पैसे के बदले में क्रिकेट के आनंद को उन देशों में ले जाया जा रहा है, जहां उस खेल को खेलने की कोई लगन, लगाव और लौ नहीं रही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button