उत्तराखंड

 जब भड़की हिंसा के बीच फंसे दो रिपोर्टर, घटना देख रह गए सन्न…अमर उजाला की ग्राउंड रिपोर्ट

हल्दू के नाम से बसे हल्द्वानी शहर अपनी नहर, शांति वाले मिजाज के बांशिदों के लिए जाना जाता रहा है। बीते वर्षों में कई बार मौका आया कि जब तनाव बढ़ा, पर ऐसा नहीं हुआ कि हालात बेकाबू हो जाएं।

हल्द्वानी में जब हिंसा भड़की तो अमर उजाला के विजेंद्र श्रीवास्तव भी वहां मौजूद थे। उन्होंने यह पूरा घटनाक्रम अपने सामने होते देखा तो सन्न रह गए। उन्होंने बताया कि टीम के पहुंचते ही माहौल में तनाव बढ़ने लगा था, हर तरफ से लोग जुटने लगे। छत पर लोग एकत्र हो रहे थे, जहां पर कार्रवाई होनी थी, उसके मोड़ के सामने एक जगह पर पुलिस ने बैरिकेडिंग लगाई हुई थी, वहां लोग जुटे थे। पुलिस ने उनसे हटने के लिए तकरार हो गई। आक्रोश बढ़ता जा रहा था, पुलिस ने उन्हें धकेलने की कोशिश की तो दूसरी तरफ से भी जोर आजमाइश और नारेबाजी होने लगी।तनाव के बीच पहुंची जेसीबी ने ध्वस्त करने की कार्रवाई शुरू की तो पथराव शुरू हो गया।

दो तरफ से पथराव हो रहा था। एक पत्थर मेरे चेहरे पर पड़ने वाला था, जिसे हाथ से रोका तो अंगुली सूज गई। बगल में खड़े एक प्रशासनिक अधिकारी ने कहा कि … आप देख रहे हैं यह ठीक नहीं हो रहा है। लोग कानून हाथ में ले रहे हैं। अभी यह बात पूरी होती कि एक पत्थर फिर हमारे और उनके बीच आया। इसके बाद एक वाहन के पीछे छिपे। इन सबके बीच लगातार ग्रुप में सूचनाएं अपडेट करने की जिम्मेदारी भी निभाते रहे। इसके बाद उपद्रवियों ने हमला तेज कर दिया, जिस मुख्य रास्ते से आए थे, वहां पर खड़े वाहनों को आग लगा दी। जहां खड़े थे, वहां 112 पुलिस की जीप में आग लगा दी गई। इसके बाद तीन तरफ से पथराव होने लगा। पत्थरों की बारिश हो रही थी।

बचने की कोई गुंजाईश नहीं थी। मेरे सामने कई पुलिसकर्मी घायल हो रहे थे, पुलिस की बचाव और जवाब देने की कोशिश नाकाफी साबित हो रही थी। ऐसे में सबके सामने विकल्प था, जान बचाने के लिए मौके से हटे। आगे बढ़े तो फिर अराजक तत्वों ने घेरकर पथराव कर दिया। इसमें कई पत्थर पीठ और पैरे में लगे। पर भागने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। लड़खड़ाते हुए आगे बढ़े और अपने साथियों को आवाज दी। इसी बीच रिपोर्टर साथी हरीश पांडे आगे मिल गए। उनसे फोटोग्राफर साथी राजेंद्र बिष्ट के बारे में पूछा तो कोई पता नहीं चला। उसके बाद दौड़कर एक टेंपो में छिप गए, फिर एक भवन में आसरा लिया। हर तरफ अपशब्दों और मारों की आवाज गूंज रही थी। एक बार लगा कि शायद… यहां से कभी निकल नहीं सकेंगे। पुलिसकर्मी भी हालात देखकर हताश होने लगे थे। हर तरफ बदहवासी और चिंता थी।

जैसे-तैसे आगे पहुंचे, वहां एक घर से पानी मांगकर पिया और बरेली रोड पर पहुंचे। यहां पुलिसकर्मी अपने घायल साथियों को ढाढ़स बंधाने के साथ जल्द अस्पताल पहुंचाने की बात कह रहे थे। यहां से पैदल ही बेस अस्पताल की तरफ चले। वहां घायलों के पहुंचने की सूचना आ रही थी। इसी बीच बनभूलपूरा थाने को फूंकने की बात सामने आने लगी थी। हर तरफ अफरातफरी थी। बेस अस्पताल पहुंचकर फिर फोटोग्राफर साथी को फोन किया तो पता चला कि उन पर घातक हमला हुआ है। उनके सिर पर चोट लगी है और खून बह रहा है। पर उनको कुछ नेक लोगों ने एक धार्मिक स्थल में सुरक्षित किया हुआ है। वे चोट लगने से ज्यादा अपने कैमरे और उसमें फोटो न मिल पाने के लिए दुखी थी।

ऐसा होगा… इस शहर में सोचा नहीं था
हल्दू के नाम से बसे हल्द्वानी शहर अपनी नहर, शांति वाले मिजाज के बांशिदों के लिए जाना जाता रहा है। बीते वर्षों में कई बार मौका आया कि जब तनाव बढ़ा, पर ऐसा नहीं हुआ कि हालात बेकाबू हो जाएं। जब भी कोई बात होती तो मामले को बिगड़ने से पहले सुलझा लिया जाता। पर इस घटना ने शहर को एक ऐसा जख्म और दाग दे दिया, जो आने वाले सालों में शायद ही भर सकें।

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