उत्तराखंड

पर लगाया 45 करोड़ का जुर्माना, एक्सप्रेसवे निर्माण में पर्यावरण नियमों का उल्लंघन

एनजीटी के चेयरमैन जिस्टस प्रकाश श्रीवास्तव, जिस्टस सुधीर अग्रवाल और डाॅ. ए सेथिंल वेल की पीठ ने हाजीपुर गांव के प्रेम मोहन गौड़ की याचिका पर यह फैसला सुनाया। 

एक्सप्रेसवे निर्माण के क्रम में पर्यावरण नियमों के उल्लंघन पर भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 45 करोड़ का जुर्माना लगाया है। मंगलवार को एनजीटी के चेयरमैन जिस्टस प्रकाश श्रीवास्तव, जिस्टस सुधीर अग्रवाल और डाॅ. ए सेथिंल वेल की पीठ ने हाजीपुर गांव के प्रेम मोहन गौड़ की याचिका पर यह फैसला सुनाया। 

याचिकाकर्ता ने एनएचएआई पर गुरुग्राम के सोहना तहसील के हाजीपुर और नूंह के किरंज गांव में डीएनडी-फरीदाबाद-केएमपी (दिल्ली-बड़ोदरा-मुंबई) एक्सप्रेसवे के निर्माण के दौरान पेड़ काटे जाने, चारागाह खराब किए जाने, जल निकासी के नाले ध्वस्त  किए जाने, पंचायती रास्ते बर्बाद किए जाने, सरकारी संरक्षित तालाब को पाट दिए जाने जैसे आरोप लगाए गए थे। 

वर्ष 2022 में लगाई गई इस याचिका के फैसले में एनजीटी ने कहा है कि एनएचएआई तीन महीने में जुर्माने की राशि हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास जमा करे। वह ऐसा नहीं करते हैं तो राज्य के मुख्य सचिव दो महीने में सड़क तोड़ कर नालों, जोहड़ और चारागाह को पुनर्स्थापित करने का काम करें। 

प्रेम मोहन द्वारा दिए गए प्रमाणों की पुष्टि करने के लिए और विवादित स्थल के तथ्यों की पुष्टि के लिए एनजीटी ने उपायुक्त गुरुग्राम की अध्यक्षता में एक सरकारी टीम का गठन किया था। इस टीम ने पिछले वर्ष जुलाई में मौके का मुआयना कर एनएचएआई को सभी मुद्दों पर दोषी पाया और अपनी रिपोर्ट में हर पर्यावरणीय उल्लंघन का विस्तार से उल्लेख किया। विस्तृत रिपोर्ट के मद्देनजर एनजीटी के न्यायाधीशों ने एनएचएआई को उल्लंघन किए हुए मुद्दों पर उपचारात्मक कार्रवाई करने का मौका दिया और अनुपालना रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया। अपनी अनुपालना रिपोर्ट में एनएचएआई ने पर्यावरणीय उल्लंघन को सिरे से खारिज कर दिया था। 

इसके बाद कोर्ट में सभी 17 प्रतिवादियों के वकीलों की वादी वकील से बहस हुई। बहस में कोर्ट ने एनएचएआई को तथ्यों के साथ सभी मुद्दों पर दोषी पाया। इसके बाद नवंबर में अंतिम सुनवाई के बाद अपने फैसले को सुरक्षित रख लिया। मंगलवार को लगभग तीन माह के अंतराल के बाद एनजीटी ने अपना अंतिम निर्णय खुली अदालत में सुनाया। अपने फैसले में अदालत ने पहले इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि जो मुद्दे पर्यावरण से संबंधित नहीं हैं, जैसे पंचायत रास्तों का खराब होना या नए निर्मित रोड की एलाइनमेंट सही नहीं होना आदि के लिए वादी, प्रेम मोहन गौड़ उचित मंच यानी उचित न्यायालय के समक्ष अपना अभियोग दर्ज करवा सकते हैं, क्योंकि ये मसले एनजीटी के क्षेत्राधिकार में नहीं आते। 

इस फार्मूले पर लगा जुर्माना  
अपने 112 पेज के फैसले में एनजीटी ने पर्यावरण के नुकसान पर एनएचआई को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा है कि सड़क तोड़ देनी चाहिए मगर सामुदायिक हित और राजस्व को देखते हुए इसे नहीं तोड़ा जा सकता है। पर्यावरण हित में अनुमति लिया जाना कोई औपचारिकता नहीं है।

परियोजना के पांच प्रतिशत का लगाया जुर्माना
एनजीटी ने एनएचएआई पर जुर्माना लगाने के लिए इस सिद्धांत का अनुसरण किया कि परियोजना के मूल्य का 10 प्रतिशत तक का जुर्माना लगाया जा सकता है और पांच प्रतिशत तक तो औसतन लगता ही है। इसलिए परियोजना का मूल्य 908 करोड़ रखते हुए पांच प्रतिशत के हिसाब से जुर्माने का मूल्य 45.4 करोड़ हुआ और उसे पूर्णांक करते हुए 45 करोड़ रखा गया। 

जुर्माना राशि के इस्तेमाल को गठित की गई कमेटी
जुर्माने की राशि को इस्तेमाल करने के लिए एक समिति का गठन किया गया है। इसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोडल एजेंसी बनाया गया है। इस समिति का हिस्सा उपायुक्त नूंह, उपायुक्त गुरुग्राम, पर्यावरण मंत्रालय से वरिष्ठ अधिकारी, प्रधान मुख्य वन संरक्षक हरियाणा, हरियाणा तालाब एवं अपशिष्ट जल प्रबंधन प्राधिकरण, हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को बनाया गया है। 

विकास के नाम पर ग्रामीणों के जीवन को अस्त-वयस्त करने और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने पर एनजीटी के इस फैसले से अंकुश लगेगा। एक्सप्रेसवे विकास की जरूरत है मगर गांव के जोहड़, चारागाह, नाले, पेड़ आदि को नुकसान पहुंचाए बगैर भी यह हो सकता था।
– प्रेम मोहन गौड़, याचिकाकर्ता

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