उत्तराखंड

सधी हुई ऊर्जा कूटनीति, एलएनजी आयात समझौता शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्यों को पूरा करने में मददगार

हाल ही में भारत ने कतर के साथ एलएनजी आयात का समझौता किया है, जो शून्य कार्बन उत्सर्जन से जुड़े लक्ष्यों को पूरा करने में सहायक होगा।

बढ़ते पर्यावरणीय संकट के बीच वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है। अनुमान है कि देश में प्राथमिक ऊर्जा मांग 2050 तक दोगुनी हो जाएगी। भारत की मौजूदा आर्थिक विकास दर 7.5 प्रतिशत से अधिक है। आर्थिक तरक्की को गति देने और समावेशी विकास के लिए ऊर्जा की नई साझेदारियां विकसित करनी होंगी। इस दिशा में भारत ने कतर के साथ 20 साल के लिए तरलीकृत प्राकृतिक गैस के आयात का समझौता किया है। 78 अरब डॉलर का यह समझौता  ऊर्जा आपूर्ति के लिए निर्णायक हो सकता है। भारत की सबसे बड़ी एलएनजी आयातक कंपनी पेट्रोनेट लि. हर साल 75 लाख टन गैस खरीदेगी।

प्राकृतिक गैस की मदद से देश में बिजली, उर्वरक और सीएनजी की उपलब्धता टिकाऊ होगी। देश में प्राकृतिक गैस की आपूर्ति के लिए 35 हजार किलोमीटर लंबी ‘वन नेशन-वन गैस ग्रिड’ स्थापित की जा रही है, जिसका उद्देश्य दूरस्थ और ग्रामीण इलाकों तक पीएनजी और एलएनजी की उपलब्धता आसान बनाना है। हमारी ऊर्जा जरूरतों में अभी प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी छह प्रतिशत है। इस दशक के अंत तक इसे 15 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य है। प्राकृतिक गैस शून्य कार्बन उत्सर्जन से जुड़े लक्ष्यों को पूरा करने में भी सहायक होगी।

इस समझौते से वर्तमान भाव पर भारत को 0.8 डॉलर प्रति 10 लाख ब्रिटिश थर्मल यूनिट की बचत होगी, जिससे 2048 तक देश को छह अरब डॉलर का लाभ होगा। साथ ही, भारत के एलएनजी आयात में कतर की हिस्सेदारी लगभग 35 प्रतिशत हो जाएगी। प्राकृतिक गैस आयात को लेकर इससे पहले दोनों देशों के बीच 1999 में समझौता हुआ था, जो 2028 में समाप्त होगा। अमेरिका के बाद कतर एलएनजी का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। कतर की सरकारी ऊर्जा कंपनी अपनी क्षमता को 2027 तक बढ़ाकर 12.6 टन सालाना करेगी।

भारत और कतर गैस समझौता देश की सधी हुई ऊर्जा कूटनीति का परिणाम है। अभी हम अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत तेल आयात करते हैं। प्राकृतिक गैस के मामले में यह अनुपात लगभग 56 प्रतिशत है। तेल और गैस के लिए खाड़ी देशों पर हमारी निर्भरता अधिक रही है। इससे हमें ओपेक की मनमानी का सामना करना पड़ता था। इसलिए पिछले वर्ष भारत ने सबसे अधिक कच्चे तेल की खरीदारी रूस से की। एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले वर्ष देश ने रूस से प्रतिदिन 16.6 लाख बैरल कच्चे तेल की खरीदारी की है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत परिशोधित (रिफाइंड) पेट्रोलियम उत्पादों का न सिर्फ बड़ा केंद्र बना, बल्कि यूरोप को सस्ती दर पर परिशोधित पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात भी किया। इससे ऊर्जा क्षेत्र के बड़े बाजार में भारत की मौजूदगी बढ़ने से ओपेक की मनमानी घटेगी।

पिछले दिनों गोवा में आयोजित ऊर्जा सप्ताह के दौरान भारत की ऊर्जा विविधिकरण को दुनिया ने देखा। इस दौरान भारत-कतर गैस समझौते के साथ ही भारतीय कंपनियों ने कई नवाचार पेश किए। भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन ने मेक इन इंडिया के अंतर्गत स्वदेशी अल्कलाइन (क्षारीय) इलेक्ट्रोलाइजर पेश किया, जो दुनिया में सबसे सस्ता इलेक्ट्रोलाइजर है। भाभा परमाणु शोध संस्थान के सहयोग से इसका प्रोटोटाइप मॉडल तैयार कर लिया गया है। इस प्रौद्योगिकी से औद्योगिक पैमाने पर हरित हाइड्रोजन का उत्पादन संभव है। भारत ने 2030 तक 50 लाख टन हरित हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य रखा है।

ऊर्जा सप्ताह के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने ओएनजीसी द्वारा तैयार समुद्री सर्वाइवल सेंटर का उद्घाटन किया। समुद्र में तेल एवं गैस परियोजनाएं सबसे जटिल अवसंरचना होती हैं। तेल और गैस उत्खनन तथा परिशोधन के दौरान जोखिम अधिक होता है। यहां मानव निर्मित हादसों के अलावा मौसमी बदलाव का खतरा बना रहता है। ऐसे में मानव जनित तथा प्राकृतिक हादसों का प्रभाव कम करने के लिए ओएनजीसी ने समुद्री सर्वाइवल सेंटर स्थापित किया है। इससे तेल एवं गैस के उत्खनन में लगे मानव संसाधन को समुद्र में उच्च स्तरीय सुरक्षा सुनिश्चित होगी। यह सर्वाइवल सेंटर हर साल 15 हजार लोगों को प्रशिक्षण प्रदान कर सकता है। इससे भारत की दक्षिण एशियाई देशों के साथ द्विपक्षीय ऊर्जा साझेदारी भी मजबूत होगी।

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