उत्तराखंड

 लिव-इन में नहीं रह सकता विपरीत धर्म का जोड़ा, धर्म परिवर्तन निषेध कानून सहमति संबंधों पर भी लागू

इसलिए बिना कानूनी प्रक्रिया के तहत धर्म परिवर्तन किए विपरीत धर्म का जोड़ा लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकता। यह आदेश न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल ने अंतर-धार्मिक जोड़े की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें पुलिस सुरक्षा की मांग की गई थी।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यूपी धर्मांतरण निषेध कानून न केवल परस्पर विरोधी धर्म के लोगों की शादी, बल्कि लिव-इन रिलेशनशिप पर भी लागू होता है। इसलिए बिना कानूनी प्रक्रिया के तहत धर्म परिवर्तन किए विपरीत धर्म का जोड़ा लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकता। यह आदेश न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल ने अंतर-धार्मिक जोड़े की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें पुलिस सुरक्षा की मांग की गई थी।

अदालत ने कहा, धर्म परिवर्तन न केवल विवाह के उद्देश्य के लिए आवश्यक है, बल्कि यह विवाह की प्रकृति के सभी रिश्तों में भी जरूरी है। मौजूदा मामले में किसी भी याचिकाकर्ता ने अधिनियम की धारा 8 और 9 के अनुसार धर्म परिवर्तन के लिए आवेदन नहीं दिया है। आर्य समाज मंदिर में शादी का पंजीकरण कराकर लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं।

कोर्ट ने कहा अधिनियम की धारा 3(1) के अनुसार कोई भी व्यक्ति गलत बयानी, बल का प्रयोग या गुमराह करके किसी अन्य व्यक्ति को दूसरे धर्म में परिवर्तित करने की कोशिश नहीं करेगा। हिंदू लड़के ने मुस्लिम लड़की से आर्य समाज मंदिर में शादी का पंजीकरण कराया था। बाद में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने लगे। इसी मामले में पुलिस सुरक्षा की मांग को लेकर याचिका दायर की थी। संवाद

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