उत्तराखंड

भाई-पिता और ताऊ-मामा से निकल ‘इलेक्शन मैनेजर’ के हाथों में आई प्रचार की कमान, ऐसे संभाल रहे चुनाव

चुनाव प्रचार और रणनीति तैयार करने का बिजनेस बढ़ गया है। डिजिटल इनोवेशन सबसे बड़ा हथियार बन गया है। आज ‘इलेक्शन मैनेजर’ की पोस्ट तैयार है, जो प्रत्याशियों और राजनीतिक दलों को अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

एक दौर था जब प्रत्याशी के भाई, पिता, चाचा, ताऊ, साला, मामा के हाथों प्रचार की पूरी कमान रहती थी। वे चंदा और खर्च से लेकर जुगाड़ के हर सिस्टम के ‘मास्टर’ होते थे। पिछले दस साल में प्रचार का तरीका बदला, तो मैनेजमेंट गुरु भी बदल गए। चुनाव प्रचार और रणनीति तैयार करने का बिजनेस बढ़ गया है। डिजिटल इनोवेशन सबसे बड़ा हथियार बन गया है। पेशेवर चुनावी रणनीतिकार काफी हद तक नतीजों को प्रभावित करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। चुनाव में पीआर और मार्केटिंग कंपनियां हावी हो गई हैं। या यूं कहें कि चुनाव मैनेजमेंट पीआर पेशेवरों के हाथों में आ गया है।

पार्टियों के वॉर रूम में कार्यकर्ताओं के साथ पीआर कंपनियों के बंदे घूम रहे हैं। आज ‘इलेक्शन मैनेजर’ की पोस्ट तैयार है, जो प्रत्याशियों और राजनीतिक दलों को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके एवज में मोटी फीस भी वसूल रहे हैं। यूपी में ही 12 से ज्यादा मैनेजमेंट गुरु प्रत्याशियों का काम संभाल रहे हैं। हार-जीत के गणित, रणनीति और उस पर की गई मेहनत के अनुसार इनकी फीस तय होती है। यह फीस 25 लाख से लेकर तीन करोड़ रुपये तक (या इससे भी ज्यादा) होती है।

पश्चिमी यूपी से चुनाव लड़ रहे एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, अब केवल टिकट मिलना ही काफी नहीं है। न ही परिवार के लोगों के सहारे चुनाव लड़ा जा सकता है। जनता बहुत जागरूक हो गई है। उनके मन को भांप पाना आसान नहीं है। इसीलिए मैनेजमेंट कंपनियों की सेवाएं ले रहे हैं। सटीक फीडबैक के लिए कार्यकर्ताओं से ज्यादा उनके प्रोफेशनल्स पर भरोसा करते हैं, क्योंकि उनके पास पूरा डाटा होता है। प्रोफेशनल्स की टीम योजना से लेकर अमली जामा पहनाने तक सेवाएं देती है। जनता को प्रभावित करने वाले अभियानों पर शोध करती है और उन्हें लॉन्च करती है। राजनीति में युवाओं का रुझान बढ़ाने के लिए भी टीम सटीक योजनाएं बनाती है।

इतनी गहराई से रणनीति बना रहे मैनेजमेंट गुरु
-सबसे पहले क्षेत्र में सभी राजनीतिक दलों और प्रमुख प्रत्याशियों की एनालिसिस चार पैरामीटर पर करते हैं। ये पैरामीटर होते हैं- प्रत्याशी की मजबूती, कमजोरी, अवसर और खतरे।
-असंतुष्ट समुदायों, जातियों, धार्मिक समूहों के रूप में खतरों का मूल्यांकन करते हैं। अधूरे वादों से होने वाले नुकसान का गहन अध्ययन करते हैं।
-किसी भी आंदोलन का आमजन के बीच असर और मतदाताओं के मुद्दों का मूल्यांकन करते हैं। इसका समाधान खोजने के लिए पार्टी-नेता-काडर के बीच मतभेद का भी अध्ययन करते हैं।

-मतदाताओं के लिए कल्याणकारी योजनाएं और पहले ऐसी किसी भी योजना के प्रभाव का विस्तार से अध्ययन करते हैं।    

जमाना बदला तो लड़ाई का तरीका भी बदल गया
वो जमाने गए जब नेताजी की छवि ही मतदाताओं से जीत का आशीर्वाद लेने के लिए पर्याप्त थी। आज छवि बदलते देर नहीं लगती। डिजिटल और इनोवेशन के दौर में मैनेजमेंट गुरु सच्चे को झूठा और झूठे को सच्चा बनाकर वायरल करने में माहिर हैं। ऐसी ही एक मैनेजमेंट कंपनी के फाउंडर बताते हैं कि प्रत्याशियों की डिमांड भी प्रतिद्वंद्वी की छवि पर असर डालने को लेकर ज्यादा होती है। पॉजिटिव ब्रांडिंग की तुलना में नेगेटिव ब्रांडिंग दस गुना ज्यादा तेजी से वायरल होती है।

ऐसे संभाल रहे चुनाव
पेशेवरों की टीम चुनाव अभियान की योजना बनाकर, उसे व्यवस्थित करके और सबसे प्रभावी तरीके से कार्यान्वित करके चुनाव जीतने में मदद करती है। दिल्ली के चुनावी रणनीतिकार सीपी मिश्र बताते हैं कि चुनाव का रणनीतिक प्रबंधन मतदाताओं को उनकी सामाजिक, वित्तीय, धार्मिक और राजनीतिक स्थिति के आधार पर विभाजित करने से शुरू होता है। इसके लिए जमीनी सर्वेक्षण की मदद से गहन शोध किया जाता है। 

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