टिहरी बाईपास रोड के लंढौर और लालटिब्बा की पहाड़ियों को रिस्पना का उद्गम स्थल कहा गया है। स्थिति यह है कि यहां पर भी पिछले 30 वर्ष में 50 फीसदी पानी कम हो गया है।
उद्गम स्थल से निकलने के बाद देहरादून पहुंचते ही रिस्पना (ऋषिपर्णा) सूख गई है। उद्गम स्थल से महज दो किलोमीटर दूर स्थित खारसी (चालंग) राजपुर में सूखी नदी में सिर्फ पत्थर और नदी के बीच आशियाने बन गए हैं। बृहस्पतिवार को अमर उजाला की टीम रिस्पना की पड़ताल करने पहुंची तो सूखी नदी के बीच में कई मकान नजर आए।
नदी बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रही है। काठबंगला में रिस्पना नाले में तब्दील हो गई है। इसमें गंदगी डंप हो रही है। टिहरी बाईपास रोड के लंढौर और लालटिब्बा की पहाड़ियों को रिस्पना का उद्गम स्थल कहा गया है। स्थिति यह है कि यहां पर भी पिछले 30 वर्ष में 50 फीसदी पानी कम हो गया है।
उद्गम स्थल से देहरादून में माता वैष्णो शक्तिधाम (शक्ति पीठ) सर्व मनोकामना पूर्ण मंदिर गांव खारसी (चालंग) राजपुर पहुंचते ही रिस्पना का पानी सूख गया है। यहां पर नदी के बीच में कई मकान बन गए हैं। इसके आगे काठबंगला पहुंचते ही कुछ जगह रिस्पना में थोड़ा पानी देखने को मिल रहा है, लेकिन यह पानी पूरी तरह मैला है। कचरे से पटी रिस्पना अब सिर्फ नाम की नदी रह गई है।
नदी का वजूद बचाने के लिए प्रयास करने की जरूरत
नाले में तब्दील होती दिख रही रिस्पना काठबंगले में रिस्पना एक नाले में तब्दील हो गई। नदी में कचरा फेंका जा रहा है। यहां आसपास लोगों के घर बने हैं। हालांकि रिस्पना नदी को बचाने के लिए शहर के विभिन्न संगठनों की ओर से सफाई अभियान चलाया जा रहा है। सफाई अभियान के दौरान यहां पर से कचरा निकाला जाता है। सरकार को नदी का वजूद बचाने के लिए प्रयास करने की जरूरत है।
एक समय था जब पानी पीते थे काठबंगले के स्थानीय निवासियों ने बताया कि यहां पर रिस्पना का पानी इतना मैला है कि इसमें से बदबू आती है। एक ऐसा समय था जब सभी लोग रिस्पना का पानी पीते थे। अब स्थिति यह है कि यहां पर कोई जानवर तक पानी नहीं पी सकता है।