
गोसेवा के लिए बढ़ा एक कदम पुण्य और प्रबंधन के मेल से उस सोपान पर जा पहुंचा, जहां बेसहारा देसी गायें कामधेनु बन गईं। यह कदम है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक एवं होम्योपैथ चिकित्सक डा. शंकर रमण का, जो बेसहारा देसी गायों की सेवा की तरफ ऐसा बढ़ा कि 15 गायों की गोशाला ही बन गई। सड़क पर भटकने वाली गायें प्रबंधन से छह लाख रुपये वार्षिक आय का स्रोत बन गईं। देसी गाय के लाभ जानने के बाद गोसंरक्षण का संकल्प लेने वाले डा. रमण ने दूध देना बंद होने के बाद छोड़ दी गई गायों को पालना शुरू किया।
पांच वर्ष पूर्व खबड़ा में किराये की जमीन लेकर गुलाब सेवाश्रम गोशाला खोल दी। इस गोशाला में अब 15 गायें हैं, जिनमें 10 को बेसहारा छोड़ दिया गया था। शेष गायें लोगों ने दान की हैं। ये गायें गिर, साहीवाल, राठी और बछौड़ नस्ल की हैं। छोड़ी गायों से दूध कम होता है, इसलिए रमण ने गोबर व गोमूत्र को आमदनी का जरिया बनाया। उनके अनुसार एक गाय प्रतिदिन 10 से 12 किलो तक गोबर देती है। माह में करीब 45 क्विंटल गोबर होता है, जिसका प्रयोग गोबर गैस प्लांट में करते हैं। इससे प्रतिमाह रसोई गैस के दो सिलेंडर के बराबर गैस मिल जाती है और गोशाला के छह सहयोगियों समेत पूरे परिवार का भोजन बन जाता है। इसके अलावा देसी गाय के दूध की बढ़िया कीमत मिल जाती है। खरीदार गोशाला तक आते हैं।
रमण गोबर का तीन प्रकार से प्रयोग करते हैं। बायोगैस में प्रयुक्त गोबर की काउ डंग डिवाटरिंग मशीन में पेराई कर गोमय रस निकालते हैं। गोबर को सुखाकर पाउडर बना लिया जाता है। एक क्विंटल गोबर से 30 लीटर गोमय रस और 20 किलोग्राम पाउडर बन जाता है। गोमय रस 15 रुपये लीटर व पाउडर 15 रुपये किलो में बिक जाता है। ये उर्वरक के रूप में तो काम आते ही हैं, पाउडर से डिजाइनर दीप व लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति भी बनाई जाती है।
