लखनऊ में हुई भाजपा कार्यसमिति की बैठक में आत्ममंथन से ज्यादा, दूसरों पर चिंतन दिखाई दिया। भाजपा कार्यसमिति सवालों से कन्नी काटते दिखी। स्वागत, भाषण, उपलब्धियों के गुणगान के साथ बैठक का समापन हुआ।
उम्मीद तो थी कि बैठक में लोकसभा चुनाव में प्रदेश में हुई पराजय के कारणों पर खुले दिल और दिमाग से मंथन होगा। उन सवालों पर बात होगी जिनके कारण प्रदेश में भाजपा कम से कम लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पहले नंबर से दूसरे पर जाती दिखी है। उन कारणों पर ईमानदारी से चर्चा होगी जिनके कारण उत्तर प्रदेश में भाजपा को अपेक्षित परिणाम नहीं मिले।
पराजय की समीक्षा बैठक की रिपोर्टों से निकले निष्कर्षों पर चर्चा होगी और भविष्य के लिए कोई ठोस कार्ययोजना उभरेगी जो भाजपा के जनाधार को फिर 2014, 2017, 2019 और 2022 की स्थिति में पहुंचाने की कार्यकर्ताओं की आकांक्षाओं को परवान देती दिखी।
पर, कार्यसमिति की बैठक सारे सवालों से कन्नी काटते दिखी। अलबत्ता, आंकड़ों के मकड़जाल से हार पर परदा डालने की कोशिश दिखी। उपलब्धियों के बखान से घिसे-पिटे शब्दों में हमेशा की तरह कार्यकर्ताओं से जनता के बीच जाने का आह्वान दिखा।
वैसे भी एक दिवसीय कार्यसमिति की बैठक में बहुत विस्तार से चर्चा होने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। वह भी तब मंच पर अतिथियों की लंबी लाइन हो और वक्ता भी कई।
उद्घाटन से लेकर राजनीतिक प्रस्ताव पारित होने और समापन तक के कार्यक्रमों में उसी पुरानी बात को बार-बार दोहराया गया जो लोकसभा चुनाव नतीजे आने के बाद भाजपा नेताओं से लेकर राजनीतिक विश्लेषक कहते रहे हैं ।
वह यह कि विपक्ष के संविधान बदलने, आरक्षण समाप्त करने और महिलाओं के खाते में खटाखट 8000 रुपये भेजने के मिथ्या प्रचार के कारण भाजपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिली। उस बात की चर्चा नहीं हुई, जिस बात से भाजपा को लोकसभा चुनाव में नुकसान हुआ।
इस बात पर बैठक में कोई चर्चा नहीं हुई कि उन नेताओं पर क्या कार्रवाई की गई जिन्होंने 400 पार होने पर संविधान बदलने का बयान दिया था। मंथन इस बात पर करने की जरूरत भी नहीं समझी गई कि पार्टी के कई प्रमुख नेताओं के इलाकों में भाजपा कोई वोट क्यों नहीं मिली।
इस सवाल पर भी कोई बात करने की जरूरत नहीं समझी गई कि अति पिछड़ी जातियों में भाजपा के कोर मतदाता समझी जानी वाली जातियां क्यों छिटक गई। सवालों पर मनन-मंथन करने से ज्यादा बैठक में नेतृत्व का फोकस सफाई देने और राहुल-अखिलेश की सफलता से हिंदू समाज पर मंडराने वाले खतरे के बारे में बताने पर रहा।
ज्यादा जोर इस बात पर रहा कि कार्यसमिति के सदस्य लखनऊ से लौटकर जाएं तो हार पर माथा न पीटें बल्कि देश में लगातार तीसरी बार भाजपा सरकार बनने की उपलब्धि का प्रचार करें। कार्यकर्ताओं में उत्साह भरें और लोगों को यह समझाएं कि भाजपा सरकार बनने के कारण हिंदू समाज पर से कितना बड़ा खतरा टल गया है।
भाजपा का खोया जनाधार वापस पाने के लिए क्या-क्या होना चाहिए। भितरघातियों से भाजपा नेतृत्व किस तरह निपटने जा रहे हैं। कार्यसमिति की बैठक में जरूरी मुद्दों पर चर्चा के बजाए सबसे अधिक जरूरी सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और कांग्रसे सांसद राहुल गांधी के सियासी रणनीति को झुठलाने की रही।