देहरादून जैसी जगह में मुझे नहीं पता कि शायद पहले कोई है या ने बजे साहब हम यहाँ देख रहे हैं कि पीसीएम ग्रुप और लायंस क्लब के सौजन्य से ये यहां एक वृद्ध आश्रम बनाया जा रहा है
अच्छी बात नहीं होगी लेकिन फिर भी मैं कहना चाहती हूं कि जैसे वृद्धाश्रम बनाए जा रहे हैं
तो ये हिंदुस्तान का कल्चर नहीं है वृद्धाश्रम वाला पर फिर भी क्योंकि मजबूरी होती ही कई बार ऐसे व्रत भी आते हैं हमारे संपर्क में भी बहुत सारे आते हैं जैसे जीते जी हैं वह बहुत सालों से समाज सेवा में जुड़े हुए हैं और खुद उन्होंने भी एक आगरा में एक वृद्धाश्रम के भूमिपूजन किया था और बहुत अच्छा चल रहा है वो लेकिन बहुत ही दुखद बात है कि कम से
हमारे कल्चर में तो ये सिंह नहीं है हमारे संस्कार तो यह नहीं है कि हमारे वृद्धों का श्रम रखा जाए और फिर भी कई जगह ज्योति जिनके पति पता नहीं होता या बहुत ही ज्यादा ट्रस्ट ऐसे होते हैं कि जिनके बच्चे रखने को किसी भी कीमत पर तैयार नहीं होते तो अभी अगर उनके लिए इतने अच्छे वातावरण में और यहां अगर यह पीसीएम ग्रुप और लायंस क्लब के माध्यम से अगर यह बन रहा है तो मैं कहती है बहुत ही एक अच्छी
बात है के सामाजिक रूप से भी और देहरादून के लिए भी यहां भी में और दूसरा ये कहूंगी कि यहां का जो इन्होंने वातावरण जो देखा है वह भी शायद ऐसा है कि जितने वृद्ध यहां रहेंगे वह भी सब अपनी परेशानियों को भूलकर और एक अच्छे नेचुरल प्रकृति के नजदीक रहने का मौका मिलेगा तो मैं इसके लिए सबको बहुत बहुत शुभकामनाएं देती हैं और मैं वर्षीय
प्रभु से प्रार्थना करूंगी कि लायंस क्लब और पीसीएम ग्रुप को के दोनों बस मिलते रहे हैं और अच्छे अच्छे काम करते हैं लायंस क्लब भी वैसे भी जैसे कि वध की सबसे बड़ी ऑर्गनाइजेशन है और हमेशा तत्पर रहती है जितने भी सामाजिक और हमारे जो समाज सेवा के काम में उनके लिए तो मैं भी उससे जुडी हुई और मुझे गर्व है कि में लायंस क्लब के मेंबर भी हूँ
रिपोर्टर: लक्ष्मण प्रकाश