उत्तराखंड

पर्वतीय राज्यों में रोपवे निर्माण की राह होगी आसान, वन भूमि के हस्तांतरण को लेकर हुआ बड़ा फैसला

रोपवे परियोजना के दृष्टिगत मंत्रालय की यह छूट बहुत बड़ी राहत है। वन भूमि हस्तांतरण के लिए दोगुनी भूमि का इंतजाम करना होता है। इस प्रक्रिया में समय लगता है। मंत्रालय की छूट से एक हेक्टेयर कम की वन भूमि के लिए इस प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होगी।

उत्तराखंड समेत सभी पर्वतीय राज्यों में रोपवे परियोजनाओं के निर्माण की राह आसान हो गई है। अब रोपवे बनाने के लिए परियोजना के दायरे की पूरी वन भूमि के हस्तांतरण की आवश्यकता नहीं होगी। केवल पिलर वाली वन भूमि का ही हस्तांतरण कराना होगा। केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सलाहकार समिति की वन संरक्षण अधिनियम में छूट की इस सिफारिश को मंजूरी दे दी है। इससे खासतौर पर उत्तराखंड राज्य के केदारनाथ, मसूरी, नीलकंठ और यमुनोत्री रोप वे परियोजनाओं के निर्माण में तेजी आ सकेगी।

वन भूमि हस्तांतरण के नोडल मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) आरके मिश्रा ने इसकी पुष्टि की है। मिश्रा के मुताबिक, रोपवे परियोजना के दृष्टिगत मंत्रालय की यह छूट बहुत बड़ी राहत है। वन भूमि हस्तांतरण के लिए दोगुनी भूमि का इंतजाम करना होता है। इस प्रक्रिया में समय लगता है। मंत्रालय की छूट से एक हेक्टेयर कम की वन भूमि के लिए इस प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होगी। पेड़ों का कटान भी रुकेगा। मंत्रालय ने पर्वतीय राज्यों में रोपवे निर्माण के लिए अगस्त 2019 में जो गाइडलाइन जारी की थी, उसे पूरी तरह से बहाल कर दिया है। सलाहकार समिति ने हिमाचल सरकार के गाइडलाइन में राहत देने की मांग पर ये राहत दी है। मंत्रालय के वन संरक्षण प्रभाग विज्ञानी चरन जीत सिंह ने सभी राज्यों के अपर मुख्य सचिवों व प्रमुख सचिवों (वन) को इस संबंध में पत्र भेजे हैं।

पहाड़ी क्षेत्र में रोपवे सुरक्षित और किफायती साधन
मंत्रालय की सलाहकार समिति ने पहाड़ी क्षेत्र में रोपवे परियोजना को पर्यावरण अनुकूल गतिविधि माना है। समिति का माना कि रोपवे के निर्माण से वन क्षेत्र में न्यूनतम अतिक्रमण और न के बराबर पेड़ों का कटान होता है। दूरदराज के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को परिवहन के सुरक्षित और किफायती साधन उपलब्ध होता है।

प्रदेश में तीन दर्जन रोपवे निर्माण के लिए प्रस्तावित
उत्तराखंड सरकार ने रोपवे विकास कार्यक्रम पर्वतमाला के तहत केंद्र सरकार को रोपवे निर्माण के लिए तीन दर्जन से अधिक प्रस्ताव भेजे हैं। गौरीकुंड-केदारनाथ और जोशीमठ-हेमकुंड साहिब रोपवे परियोजना का तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शिलान्यास तक कर चुके हैं। राज्य सरकार वर्तमान में केदारनाथ, नीलकंठ, यमुनोत्री, मसूरी रोपवे परियोजनाओं के लिए वन भूमि हस्तांतरण की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है। मंत्रालय के फैसले के बाद अब इन प्रस्तावों तेजी आ सकेगी।

केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत रोपवे निर्माण के लिए जो राहत दी है, उससे राज्य के प्रस्तावित रोपवे प्रस्तावों पर तेजी से काम करने में मदद मिलेगी। केंद्र के फैसले के आलोक में जल्द ही सभी प्रस्तावित रोपवे परियोजनाओं में तेजी से काम करने के संबंध समीक्षा की जाएगी।

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