उत्तराखंड

विधानसभा का मानसून सत्र विपक्षी हमलों के खिलाफ अब कौन बनेगा ढाल, क्या सीएम ही संभालेंगे कमान

विधायी एवं संसदीय कार्य मंत्री की जिम्मेदारी निभाना तलवार की धार पर चलने जैसे है। सदन के भीतर विधायी एवं संसदीय कार्यमंत्री का किरदार निभाने वाले प्रेमचंद अग्रवाल इस्तीफा दे चुके हैं। उनके विभाग मुख्यमंत्री संभाल रहे हैं। अभी तक की तो यही परंपरा रही है कि मुख्यमंत्री विस के भीतर विधायी एवं संसदीय कार्य मंत्री का किरदार नहीं निभाते हैं।प्रदेश की धामी सरकार अगस्त महीने में विधानसभा का मानसून सत्र आहूत करने जा रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सत्र के स्थान और तारीख को लेकर निर्णय लेना है। प्रदेश मंत्रिमंडल ने सीएम धामी को इसके लिए अधिकृत किया है। साथ ही सत्र को लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चाओं का बाजार भी गर्म हो गया है।सवाल तैर रहा है कि विधानसभा के भीतर धामी सरकार पर विपक्षी हमलों के खिलाफ इस बार कौन ढाल बनेगा? यह प्रश्न इसलिए भी मौजूद है क्योंकि सदन के भीतर विधायी एवं संसदीय कार्यमंत्री का किरदार निभाने वाले प्रेमचंद अग्रवाल इस्तीफा दे चुके हैं। उनके विभाग मुख्यमंत्री संभाल रहे हैं। अभी तक की तो यही परंपरा रही है कि मुख्यमंत्री विस के भीतर विधायी एवं संसदीय कार्य मंत्री का किरदार नहीं निभाते हैं। क्या धामी इस रस्म को तोड़कर स्वयं सदन के भीतर विपक्षी हमलों के खिलाफ ढाल बनेंगे या फिर अपने मंत्रिमंडल के किसी अन्य मंत्री को वह ये जिम्मेदारी देंगे।सियासी हलकों में ये प्रश्न तैरने लगे हैं। वर्तमान में धामी के पास 40 से भी अधिक विभाग हैं। सीएम होने के नाते राजकाज से जुड़ी उनकी अपनी व्यस्तताएं भी हैं। इन्हीं वजहों से सीएम सदन के भीतर फ्लोर मैनेजमेंट के लिए एक चतुर, चपल और अनुभवी मंत्री पर दांव लगाते हैं।

जिम्मेदारी निभाना तलवार की धार पर चलने जैसा

विकल्प ऐसा चाहिए जो विपक्षी हमलों को तार्किक जवाबों से न सिर्फ नाकाम करे बल्कि तर्कों के तीरों से जवाबी हमला बोलने में भी पारंगत हो। पिछले ़सत्र का जो अनुभव रहा है, उसे देखते हुए सदन में विधायी एवं संसदीय कार्य मंत्री की जिम्मेदारी निभाना तलवार की धार पर चलने जैसा है।यहां जुबान फिसलने और संयम खोने से क्या-क्या गंवाने की नौबत आ सकती है, पिछले सत्र से समझा जा सकता है। ऐसे में फ्लोर मैनेजर की खोज आसान नहीं होगी। बहरहाल, धामी कैबिनेट में अनुभव और वरिष्ठता के हिसाब से सतपाल महाराज, डॉ. धन सिंह रावत और सुबोध उनियाल के तौर पर तीन प्रमुख चेहरे हैं, जिनकी चर्चा हो रही है। मगर फैसला अंतत: सीएम को ही लेना है।

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