उत्तराखंड

  देहरादून :- ई-डीएनए से तलाशे गंगा में संकटग्रस्त प्रजातियों के कई नए कुनबे,

व्हेल से लेकर कछुए समेत तमाम जलीय जंतुओं की खोज और प्रजातियों का पता लगाया गया

भारतीय वन्यजीव संस्थान में वार्षिक शोध कार्यशाला के दूसरे दिन पर्यावरणीय डीएनए अर्थात ई-डीएनए पर खुलकर चर्चा हुई। वैज्ञानिकों ने ई-डीएनए को आने वाले सालों में जैव विविधता संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण टूल बताया। कहा, ई-डीएनए जीवों और वन्यजीवों के आनुवंशिक अंशों से उनकी प्रजातियों का पता लगाने में कारगर है। खासकर जलीय वातावरण में जैव विविधता आंकलन और संरक्षण और सर्वेक्षण में यह तकनीक बेहद काम की है।

भारतीय वन्यजीव संस्थान में वार्षिक शोध कार्यशाला के दूसरे दिन शोधकर्ताओं ने गंगा और उसकी सहायक नदियों में जैवविविधता संरक्षण को लेकर रिसर्च पेपर प्रस्तुत किए। बताया कि ई डीएनए व्हेल से लेकर कछुए समेत तमाम जलीय जंतुओं की खोज और दुर्लभ, संकटग्रस्त प्रजातियों का पता लगाने में काफी सफलता मिली है। इससे कई जीवों के तो वंश और प्रजातियों को पहचानने में सफलता मिली है। डॉ. विष्णुप्रिया और टीम ने गंगा नदी में डॉल्फिन संरक्षण और ई-डीएनए को लेकर अपना शोध प्रस्तुत किया। कहा, भारत की प्रमुख नदियों गंगा और ब्रह्मपुत्र की घाटियां बेहद उपजाऊ हैं। इनकी अधिक लंबाई के कारण, इन नदियों में उपलब्ध विशाल जैव विविधता को ठीक तरह से चिह्नित नहीं कर पाते हैं। पर्यावरणीय डीएनए (ई-डीएनए) तकनीक दुर्लभ प्रजातियों का पता लगाने और प्रजातियों की विविधता को निर्धारित करती है। बताया, ई-डीएनए से छह मछलियों और 22 प्लैंकटोनिक परिवारों का पता लगाया, ईडीएनए विश्लेषण में 16 स्तनधारी प्रजातियों के परिवारों की पहचान की गई।

गंगा प्रहरी समूह बचा रहा गंगा

शोधकर्ता निधि सिंह ने सेमिनार में बताया कि गंगा जैव विविधता संरक्षण के लिए गंगा किनारे बसे स्थानीय समुदायों को एकजुट कर ग्राम स्तर पर ग्रामीणों को शामिल कर नदी संरक्षण के प्रयासों को तेज किया गया है। यह परियोजनाएं गंगा नदी बेसिन में संचालित की जा रही हैं। विभिन्न हितधारकों के साथ संबंध स्थापित करने के लिए ऑनलाइन मंच बनाया गया है। आत्मनिर्भर समुदाय और गंगा प्रहरी समूहों के प्रयासों से गंगा में जैव विविधता संरक्षण किया जा रहा है।

6000 कछुओं को बचाया, पुनर्वास किया

भावना पंत ने शोध पत्र के जरिए बताया गया कि गंगा बेसिन के 40 प्रतिशत में उच्च जैव विविधता मूल्य हैं। नदी के 12 प्रतिशत हिस्सों को संरक्षण के लिए निर्धारित किया गया। इसमें लगभग 6000 कछुओं को बचाया गया और उनका पुनर्वास किया गया। गंगा प्रहरी कैडर में 4024 स्वयंसेवकों को चिन्हित किया गया। इसमें करीब 50 प्रतिशत महिलाएं हैं। लगभग 3800 व्यक्तियों को हरित आजीविका में प्रशिक्षित किया गया। जनता को शिक्षित करने के लिए गंगा, यमुना, गोमती और गंडक नदियों के किनारे तीन व्याख्या केंद्र और 48 जलमाला संवाद स्थापित किए गए।

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