उत्तराखंड

आखिर ट्रूडो को परेशानी क्या है, महाशक्तियों से रिश्ते बिगाड़ चुका है उनका यह मिजाज

मनमौजी ट्रूडो की खुफिया सेवाओं का भारत पर कनाडा के लोकतांत्रिक संस्थानों को नष्ट करने का आरोप हैरान नहीं करता, क्योंकि मनगढ़ंत और बेबुनियाद आरोप लगाने की इसी आदत के चलते उन्होंने अमेरिका, चीन और विश्व की कई बड़ी शक्तियों के साथ अपने रिश्ते खराब किए हैं।

रामायण में भगवान राम के भरोसेमंद सखा हनुमान जी को अपनी महान शक्ति को भूलने का श्राप मिला है। भालुओं के राजा जामवंत उन्हें याद दिलाते हैं और बाकी की कहानी सब जानते हैं। इसमें संदेह नहीं कि शताब्दी के तीसरे दशक में भारत अच्छाई की शक्ति के रूप में उभर रहा है और इसकी प्रतिष्ठा आसमान छू रही है। न केवल इसकी अर्थव्यवस्था फल-फूल रही है, बल्कि इसकी वैज्ञानिक क्षमता और नए डिजिटल भविष्य की दिशा में इसका नेतृत्व भी स्पष्ट है।

विकासशील दुनिया भारत के नेतृत्व को स्वीकार करती है और उसका अनुकरण भी करना चाहती है। शक्तिहीन होती पाश्चात्य शक्तियां इससे भयभीत हैं। भारत की नीति हमेशा स्वतंत्र एवं स्वायत्त रही है। जाहिर है, खुद को ब्रह्मांड का मालिक मानने वाले देश हमारी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेंगे। चूंकि अब कोई जामवंत नहीं है, नशे के आदी विदूषकों के राजा (ट्रूडो) ने, जो वैश्विक मंच पर जगह बनाने के लिए कुछ भी करने को तैयार है, अपनी खुफिया सेवाओं को भारत के खिलाफ हास्यास्पद आरोप लगाने का फरमान जारी किया।

सबसे पहले उसने यह बेतुका आरोप लगाया कि भारत ने उसके वफादार व्यक्ति की हत्या कर दी है। उसने दुनिया भर को इसके बारे में बताया। लेकिन जब उसका ज्यादा असर नहीं हुआ, तो उन्होंने अपनी खुफिया सेवाओं को भारत पर कनाडा के चुनाव में हस्तक्षेप करने और उसकी लोकतांत्रिक संस्थानों को नष्ट करने की योजना बनाने के आरोप लगाने का आदेश दिया। कोई पूछ सकता है कि इसका सबूत क्या है?

खैर, कनाडा में भारतीय प्रवासियों का एक बहुत बड़ा वर्ग है, जो भारत-हितैषी उम्मीदवारों को वोट दे सकता है। वे भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक हैं और कनाडा के कानून के तहत ही उन्हें कनाडाई नागरिकता मिली है। लेकिन ट्रूडो विलाप करते हुए कहते हैं, ‘हम कानून के राज में विश्वास करते हैं, लेकिन गैर-श्वेत कनाडाई लोगों ने अब तक कनाडाई झंडे को नहीं अपनाया है।’ लेकिन ट्रूडो ने क्या कभी इसकी वजह सोची है? कनाडा भारतीय मूल के प्रवासियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करता है। हालांकि विदूषक ट्रूडो शेखी बघारते हैं कि वे लोकतांत्रिक और सबको समान अवसर देने वाले लोग हैं, पर वास्तविकता में वे नस्लवादी हैं। कनाडा एक छोटी शक्ति वाला बड़ा देश है, और उसे सम्मान व प्रशंसा पाने की प्रबल इच्छा है। इसलिए वह अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपनी नाक घुसेड़ता है, और विवेकशील लोग उसकी आंखों में खटकने लगते हैं। तमिल विद्रोह के दौरान कनाडा ने श्रीलंका पर मानवाधिकारों के उल्लंघनों के बारे में खूब शोर मचाया, जवाब में, श्रीलंका ने भी लिट्टे आतंकवादियों को शरण देने का उन पर आरोप लगाया।

श्रीलंका के विदेश मंत्री ने कहा कि आतंकवादियों को कनाडा में सुरक्षित पनाहगाह मिल गई है और वह भारत के खिलाफ ट्रूडो की टिप्पणियों से ‘हैरान नहीं’ हैं, क्योंकि ‘अपमानजनक और बेबुनियाद आरोप’ लगाना उनकी आदत है। विदूषक ट्रूडो पाकिस्तान (खासकर बलूचिस्तान और खैबर क्षेत्र) में गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों के बारे में चुप हैं, क्योंकि प्रमुख कनाडाई कंपनियां वहां खनन में शामिल हैं। 1980 के दशक में एक कनाडाई खनन कंपनी बंद हो गई, जब यह साबित हुआ कि इंडोनेशिया में सोने के विशाल भंडार की खोज के बारे में उसने बेशर्मी से झूठ बोला था। अपने सहयोगियों के समर्थन के बिना कनाडा की सेना भूटान जितनी ही मजबूत है। उसने यूक्रेन से जिन हथियारों का वादा किया, वह अब तक बन भी नहीं पाए हैं।

आधुनिक इतिहास में पहली बार एक संपन्न, बड़े और कम आबादी वाले पश्चिमी देश के प्रधानमंत्री ने सबसे ताकतवर विकासशील देश से अपने रिश्ते को यह आरोप लगाकर खत्म कर दिया कि उसने, उसके सबसे प्रिय आतंकवादी, जो भारतीय मूल का कनाडाई नागरिक था, की कनाडा की धरती पर हत्या कर दी। उन्होंने इस घटना को वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा बताया। लेकिन भारत ऐसा क्यों करना चाहेगा, उसे इससे क्या हासिल होगा? ट्रूडो इसका जवाब नहीं देंगे कि क्या वह व्यक्ति भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने और टेरर-फंडिंग में शामिल था, और क्या उसने कनाडा में असॉल्ट राइफल लहराते हुए अपने वीडियो पोस्ट किए थे? इसलिए भारत के विदेश मंत्री ने नवंबर, 2023 में लंदन में कहा कि कनाडा चाहता है कि हम उसकी धरती पर एक कनाडाई की हत्या की जांच में ‘सहयोग’ करें, लेकिन वह हमें यह भी बताने में असमर्थ है कि वह किस तरह के सहयोग की अपेक्षा करता है।

कनाडा की अहंकारी विदेश मंत्री, जिसने भारत को धमकी दी थी कि वह आतंकी की हत्या में भारत की संलिप्तता के बारे में अपने सहयोगियों से बात करेंगी, अब भारत की प्रतिक्रिया से हिल गई हैं और भारत से निजी तौर पर इस मसले पर बात करना चाहती हैं। तो अब आगे क्या होगा? मैं पिछले पचास वर्षों से कूटनीति में हूं। राष्ट्रों के बीच भरोसा कायम करने में दशकों लग जाते हैं। लेकिन रिश्ते खराब करने के लिए कुछ गलत बयान ही काफी होते हैं।

भारत एक परिपक्व और शक्तिशाली लोकतंत्र है। विदेश नीति को लेकर विभिन्न दलों में यहां आम सहमति है। ट्रूडो ने कई प्रमुख शक्तियों के साथ अपने रिश्ते खराब किए हैं। उन्होंने पुतिन को बेवजह गालियां दीं, चीनी नेता ने कनाडाई मीडिया को उनकी गोपनीय चर्चाओं के बारे में जानकारी देने के लिए 2022 में बाली में सार्वजनिक रूप से अपमानित किया और जब उन्होंने जी-7 शिखर सम्मेलन में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का मजाक उड़ाया, तो अमेरिका भी नाराज हो गया था।

जब एक अमेरिकी-कनाडाई आतंकवादी ने एयर इंडिया के विमानों को उड़ाने की धमकी दी, तो ट्रूडो ने कहा कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। तो अगर कुछ अप्रिय हुआ, तो क्या इसे ट्रूडो के कानून के मुताबिक कार्रवाई की स्वतंत्रता माना जाए? भारत-कनाडा संबंधों को सुधारने में दशकों लगेंगे। कनाडा हमारी विदेश नीति के रडार पर बहुत नीचे है। ट्रूडो भारत पर रिश्ते तोड़ने का भी आरोप लगा सकते हैं, तो हम इसमें आखिर क्या कर सकते हैं! ओटावा एक समय वरिष्ठ भारतीय राजनयिकों के लिए अच्छी पोस्टिंग थी। लेकिन फिलहाल वह भारतीय कूटनीतिज्ञों के लिए अच्छी जगह नहीं रह गई है। उम्मीद है, इस बार मोदी फिर चुनाव जीतकर सत्ता में लौटेंगे। यदि तब तक ट्रूडो का नशा उतर जाए, तो वह उन्हें बधाई दे सकते हैं। हो सकता है, इससे रिश्ते में थोड़ी गर्मजोशी आए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button