राजधानी दून के बीचोबीच से बहने वाली रिस्पना, बिंदाल जैसी नदियों के साथ ही तालाबों पर कब्जे कर न सिर्फ आशियाने बना लिए गए। बल्कि सरकार, शासन के स्तर से अनाधिकृत तरीके से बसी बस्तियों का नियमितीकरण भी कर दिया गया। यह कब्जे का खेल सिर्फ दून में ही नहीं। बल्कि विकासनगर, ऋषिकेश और डोईवाला में भी खेला गया। लेकिन, जिम्मेदारों ने सबकुछ जानते हुए भी इस पर कोई कार्रवाई नहीं की। आज यही अतिक्रमण आपदा का शिकार हो रहे हैं।
अब जबकि हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सचिव वन, सचिव शहरी विकास और सचिव राजस्व से विस्तृत रिपोर्ट तलब कर ली है तो सरकार, शासन से लेकर जिला प्रशासन तक में हड़कप मच गया है। सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार से पूछा कि आखिरकार तालाबों, नदियों पर किए गए अतिक्रमण को हटाने को लेकर क्या कदम उठाए गए हैं? फिलहाल अदालत में सरकार इस पर कोई जवाब नहीं दे पाई है। अब स्थिति यह है कि जरा सी बारिश में यह नदी-नाले उफान पर आ जाते हैं और इन कब्जों को तहस-नहस कर देते हैं। जिससे जान-माल का भारी नुकसान होता है। साथ ही कई लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ी रहती है।
जिलाधिकारी सोनिका ने बताया कि अदालत के आदेश को लेकर उन्हें फिलहाल कोई जानकारी नही है। जहां तक नदियों, तालाबों पर कब्जों का सवाल है तो इस संबंध में भी उन्हें कोई खास जानकारी नहीं है। इसकी विस्तृत जांच कराई जाएगी और इसकी रिपोर्ट तैयार कर सरकार व शासन को सौंपी जाएगी।