उत्तराखंड

महर्षि अगस्त्य क्यों पी गए सारा समुद्र, कालकेयों से संसार को कैसे दिलाई मुक्ति?

कालकेय समुद्र-तल में रहने लगे। वे रात्रि के अंधकार में बाहर निकलकर आश्रमों में सोते हुए ऋषियों की हत्या कर देते और दोबारा पानी में जा छिपते थे। ऋषि-समुदाय के लिए यह चिंता की बात थी।

वृत्रासुर ने देवताओं और ऋषि-मुनियों पर इतना अत्याचार किया कि उसका वध करना अनिवार्य हो गया। अंततः, देवराज इंद्र ने महर्षि दधीचि की अस्थियों से निर्मित वज्र से वृत्रासुर को मार डाला। वृत्रासुर के वध से कालकेय नाम के राक्षसों ने ऋषियों से प्रतिशोध लेने की योजना बनाई।

कालकेय समुद्र-तल में रहने लगे। वे रात्रि के अंधकार में बाहर निकलकर आश्रमों में सोते हुए ऋषियों की हत्या कर देते और दोबारा पानी में जा छिपते थे। कालकेयों ने बड़ी संख्या में ऋषियों की हत्या कर दी। ऋषि-समुदाय के लिए यह चिंता की बात थी। वे सब मिलकर भगवान विष्णु के पास गए।

विष्णु ने ऋषियों से कहा, ‘आपकी इस समस्या का समाधान केवल महर्षि अगस्त्य के पास है। अगस्त्य, अग्निदेव के अवतार हैं। उनके पास असाधारण शक्तियां हैं और वह अत्यंत दयालु भी हैं। वह किसी को निराश नहीं करते। आप उनके पास अपनी समस्या लेकर जाएंगे, तो वह अवश्य ही सहायता करेंगे।’ यह कहकर विष्णु फिर ध्यान में लीन हो गए।

ऋषिगण समझ गए कि भगवान विष्णु उनकी इससे अधिक सहायता नहीं कर सकते थे। इसलिए उन्होंने अगस्त्य मुनि के पास जाने का निश्चय किया। सारे ऋषि-मुनि मिलकर महर्षि अगस्त्य के पास पहुंचे और उन्होंने अगस्त्य को अपनी समस्या बताई।

महर्षि, हम पर भारी संकट टूट पड़ा है। समुद्र में बड़ी संख्या में कालकेय असुर छिपे हुए हैं। वे रात्रि के समय बाहर निकलकर सोते हुए ऋषि-मुनियों की हत्या कर देते हैं और सुबह होने से पूर्व फिर समुद्र में छिप जाते हैं। इस कारण ऋषियों की संख्या घटती जा रही है। कालकेय रात्रि में आक्रमण करते हैं, इसलिए उन्हें कोई देख भी नहीं पाता। रात्रि में उनकी शक्ति भी कई गुना बढ़ जाती है। भगवान विष्णु ने कहा है कि केवल आप हमारी सहायता कर सकते हैं। हम आपके पास बहुत आशा लेकर आए हैं। ऋषियों की सहायता करना आपका धर्म है।’

यह सुनकर महर्षि अगस्त्य सोच में डूब गए। फिर कुछ देर बाद उन्होंने कहा, ‘कालकेयों को समुद्र से बाहर निकाले बिना उन्हें मारना संभव नहीं है। परंतु आप सब चिंता न करें। मैं आपकी सहायता अवश्य करूंगा। मेरे साथ चलिए!’

यह कहकर अगस्त्य सभी ऋषि-मुनियों को साथ लेकर समुद्र-तट पर पहुंच गए। इस बीच उन्होंने देवराज इंद्र से देवताओं की सेना के साथ समुद्र-तट पर तैयार रहने को कह दिया। ऋषि-मुनि यह देखने को उत्सुक थे कि दिन के प्रकाश में अगस्त्य निशाचर कालकेयों को कैसे नियंत्रित करने वाले थे। महर्षि अगस्त्य तट पर बैठ गए। उन्होंने अपने योगबल से देखा कि सचमुच बहुत बड़ी संख्या में कालकेय समुद्र तल में छिपे हुए थे। इसके बाद महर्षि अगस्त्य ने एक मंत्र का उच्चारण आरंभ कर दिया।

    • मंत्र के प्रभाव से कुछ ही देर में समुद्र में ऊंची-ऊंची लहरें उठने लगीं, जिन्हें देखकर तट पर खड़े ऋषि-मुनि घबराकर पीछे हट गए। परंतु अगस्त्य अपने स्थान पर डटे रहे।

    अगस्त्य मुनि ने समुद्र का जल अंजुलि में भरकर पीना शुरू कर दिया। समुद्र-जल की अटूट धारा अगस्त्य की अंजुलि में भरती गई और अगस्त्य उसे पीते गए। ऋषियों को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। कुछ ही देर में समुद्र का जल-स्तर घटने लगा और पानी में छिपे कालकेय असुर दिखाई देने लगे। आखिरकार, अगस्त्य ने समुद्र का सारा पानी पी लिया! कालकेयों के छिपने के लिए अब कोई स्थान नहीं बचा था। विवश होकर वे सब समुद्र से बाहर निकल आए।

    अगस्त्य की योजनानुसार, समुद्र-तट पर देवताओं की सेना पहले से तैयार खड़ी थी। कालकेयों के बाहर निकलते ही देवताओं ने उन्हें घेर लिया। कालकेयों और देवताओं में घमासान युद्ध हुआ, जिसमें कालकेय परास्त हुए और उनमें से अधिकतर मारे भी गए।

    इस तरह महर्षि अगस्त्य ने समुद्र का जल पीकर कालकेयों से संसार को मुक्ति दिलाई।

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