उत्तराखंड

कांग्रेस के घोषणापत्र में क्या है?

लोकसभा चुनाव का मतदान जारी है। इस बार ‘कांग्रेस के वादे’ और ‘मोदी की गारंटी’ के बीच मतदाता किधर हैं? कांग्रेस के घोषणापत्र को लेकर जो सियासी घमासान मचा है, उसे क्या कांग्रेस की रणनीतिक जीत माना जा सकता है? 

ऐसा लगता है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सद्भावना और सहयोग के अभूतपूर्व संकेत के तौर पर कांग्रेस के घोषणापत्र को एक बार फिर से अपनी ओर से लिखने और अपने विचारों को उसमें शामिल करने की पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है। उनका मानना है कि राजनीतिक संवाद को बेहतर बनाया जाए। बीते सप्ताह जितना कुछ भी प्रधानमंत्री ने कहा उसके बाद मेरी राय तो यही है। 

इस राजनीतिक परिदृश्य के पीछे एक बहुत ही दिलचस्प कहानी है। 14 अप्रैल को जब भारतीय जनता पार्टी का घोषणापत्र जारी किया गया था, यह स्पष्ट हो गया था कि मोदी, राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में गठित समिति के द्वारा तैयार किए गए दस्तावेज से खुश नहीं थे। समिति ने भी चुपचाप इस बात को स्वीकार कर लिया कि यह किसी राजनीतिक दल का घोषणापत्र नहीं है, बल्कि किसी एक आदमी की महानता को श्रद्धांजलि है, जिसने पार्टी को तैयार किया है। समिति ने उस दस्तावेज को मोदी की गारंटी का नाम देकर अपनी कृतज्ञता जाहिर कर दी। हालांकि पीएम मोदी ने ‘जैसा सोचा था वैसा हुआ नहीं’ और मोदी की गारंटी वाली बात इसके जारी होने के कुछ ही घंटों के बाद गायब हो गई। आज न तो कोई भाजपा के घोषणापत्र की बात करता है और न ही अब मोदी की गारंटी की गूंज सुनाई देती है।

मूल घोषणापत्र पर टिप्पणी
पीएम मोदी भी अब मोदी की गारंटी को नकार नहीं सकते और न ही मसौदा तैयार करने वाली समिति को अक्षम बता सकते हैं। अब उन्होंने नई चाल चलते हुए कांग्रेस के घोषणापत्र पर अपनी टिप्पणी करके इस घोषणापत्र को पढ़ने वालों की संख्या बढ़ाने का फैसला किया है। यह भारतीय साहित्य की उन महान परंपराओं की तरह ही है, जहां टिप्पणियां किए गए कार्यों से अधिक महत्वपूर्ण हो जाती हैं। मोदी द्वारा कांग्रेस के घोषणापत्र की नए सिरे से राजनीतिक व्याख्या में निम्नांकित तथ्य शामिल हैं :

  • कांग्रेस लोगों की जमीन, सोना और अन्य कीमती सामान मुसलमानों में बांटेगी।
  • कांग्रेस व्यक्तियों की संपत्ति, महिलाओं के पास मौजूद सोने और आदिवासी परिवारों के पास मौजूद चांदी का मूल्य निर्धारण करने और उन्हें छीनने के लिए सर्वेक्षण कराएगी।
  • सरकारी कर्मचारियों की जमीन और नकदी कांग्रेस द्वारा जब्त और वितरित की जाएगी।
  • डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला दावा मुसलमानों का है और जब डॉ. सिंह ने यह बात कही तो मैं (गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में) मौजूद था।
  • कांग्रेस आपका मंगलसूत्र और स्त्रीधन छीन लेगी और उन लोगों को दे देगी, जिनके अधिक बच्चे हैं।
  • अगर आपके पास गांव में घर है और आप शहर में एक छोटा सा फ्लैट खरीदते हैं, तो कांग्रेस उनमें से एक घर छीन लेगी और किसी और को दे देगी। 

साथ काम करने वालों के बीच प्रतिस्पर्धा
पीएम मोदी के भरोसेमंद सिपहसालार और सलाहकार, अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस मंदिरों की संपत्तियों को जब्तकर लोगों में बांट देगी, जबकि राजनाथ सिंह ने कहा, कांग्रेस लोगों की संपत्ति हड़प लेगी और उन्हें घुसपैठियों को फिर से बांट देगी। अगले ही दिन, राजनाथ सिंह ने अपनी टिप्पणी में यह कहकर एक और रत्न जड़ दिया कि कांग्रेस ने सशस्त्र बलों में धर्म-आधारित कोटा शुरू करने की योजना बनाई थी। 

जैसे-जैसे टिप्पणीकारों की संख्या बढ़ती गई , वे एक-दूसरे से आगे निकलते गए। दूसरी तरफ मोदी को पता चला कि कांग्रेस ‘विरासत कर’ लागू करने की योजना बना रही थी और उन्होंने इस कर के खिलाफ आवाज उठाई। इस बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी टिप्पणी वाले रणक्षेत्र में कूद पड़ीं और ‘विरासत कर’ को लेकर अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय दिया। हालांकि उन्हें जानकारी के अभाव में इस बात के लिए माफ किया जा सकता है कि संपत्ति शुल्क (एक प्रकार का विरासत कर) को 1985 में कांग्रेस सरकार द्वारा समाप्त कर दिया गया था और संपत्ति कर 2015 में भाजपा सरकार द्वारा समाप्त कर दिया गया था। यह देखना मुश्किल नहीं है कि कांग्रेस के घोषणापत्र पर एक साथ हमला क्यों और कब शुरू हुआ ? 19 अप्रैल को पहले दौर के मतदान के बाद ही पीएमओ और भाजपा में घबराहट फैल गई है। पीएम मोदी ने 21 अप्रैल को राजस्थान के जालौर और बांसवाड़ा में जो हमला शुरू किया, वह उसके बाद से रुके नहीं। 

भाजपा ने जिन काल्पनिक लक्ष्यों की सूची बनाकर कांग्रेस पर हमला शुरु किया, वह अटपटा सा था। उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने भी खूब शब्दबाण छोड़े। इस बात को लेकर मीडिया का कर्तव्य बनता था कि वह इस पागलपन को रोकने के लिए आवाज उठाए, लेकिन  इसके बजाय, समाचार पत्रों ने विवादास्पद विषयों की ‘व्याख्या’ की और एक से बढ़कर एक संपादकीय लिखे। टीवी चैनलों ने राजनीतिक पंडितों के साक्षात्कार  ले -लेकर चर्चा की। पीएम मोदी द्वारा शुरू किया गया नकली युद्ध कई गुना बढ़ गया।

क्या उम्मीद की जा सकती थी?
5 से 19 अप्रैल के बीच कांग्रेस का घोषणापत्र पूरे भारत में सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बन गया था। खासकर उसके निम्नलिखित वादों ने लोगों के मन पर गहरी छाप छोड़ी थी –

  • सामाजिक-आर्थिक और जाति सर्वेक्षण;
  • आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा हटाना;
  • मनरेगा श्रमिकों के लिए 400 रुपये दैनिक वेतन;
  • सबसे गरीब परिवारों के लिए महालक्ष्मी योजना;
  • कृषि उपज के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी;
  • कृषि ऋण माफी पर सलाह देने के लिए एक आयोग की नियुक्ति;
  • युवाओं को प्रशिक्षण का अधिकार;
  • अग्निवीर योजना की समाप्ति;
  • डिफॉल्ट किए गए शिक्षा ऋणों की माफी और
  • केंद्र सरकार में 30 लाख रिक्तियां एक साल में भरने का वादा।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने जब कांग्रेस के घोषणापत्र को ‘लोकसभा चुनाव का हीरो’ बताया, तब वे निशाने पर आ गए। स्टालिन के बयान ने पीएम को आहत जरूर किया, इसके बाद उन्होंने कांग्रेस के घोषणापत्र को एक ‘खलनायक’ के रूप में देश के सामने लाने का निर्णय लिया। उनके लिए दुर्भाग्य की बात यह रही कि कांग्रेस के घोषणापत्र के किसी भी हिस्से को गलत नहीं ठहराया जा सका। इसलिए, प्रधानमंत्री ने कांग्रेस के घोषणापत्र को  एक ‘भूत’ द्वारा लिखा गया बताकर उसे रद्दी में डालने का फैसला किया। मेरे विचार से, यह एक भाजपाई प्रधानमंत्री द्वारा कांग्रेस के वास्तविक घोषणापत्र को दी जाने वाली सबसे अच्छी श्रद्धांजलि है! अगर भाजपा तीसरी बार सत्ता में आती है तो उससे किस तरह के व्यवहार की उम्मीद की जा सकती है। अगर प्रधानमंत्री मोदी को इन घोषणापत्रों को दोबारा लिखने में सफलता हासिल मिल जाती है तो वे भारत के संविधान को भी फिर से लिख सकते हैं।

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