
इसे सरकारी प्रयासों का प्रतिफल कहें या माटी से जुड़ाव का परिणाम अथवा बढ़ते शहरीकरण का असर, कारण चाहे जो भी हों, लेकिन उत्तराखंड के गांवों से पलायन को लेकर स्थिति सुधरने के सुखद संकेत मिलने लगे हैं।
पलायन निवारण आयोग का सर्वे तो इसी तरफ इशारा कर रहा है। यह बात निकलकर आ रही कि गांव की चौखट से निकले कदम राज्य के शहरी क्षेत्रों में ही थमने लगे हैं। अन्य प्रदेशों के लिए पलायन की रफ्तार मंद पड़ी है।
राज्य के आंगन में ही सिमटते दिख रहे पलायन से ग्रामीण परिवारों की आय के स्रोत भी बढऩे लगे हैं। यद्यपि, आयोग अभी सर्वे के आंकड़ों के विश्लेषण में जुटा है और रिपोर्ट तैयार होने के बाद ही पलायन को लेकर सही स्थिति सामने आएगी।
उत्तराखंड के गांवों से पलायन ऐसा विषय है, जो राज्य गठन के 22 वर्ष बाद भी चुनौती बना है। नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड के अस्तित्व में आने के 17 साल बाद सरकार ने पलायन की भयावहता को महसूस किया। नतीजा, ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग (अब पलायन निवारण आयोग) का गठन किया।