उत्तराखंड के जोशीमठ में भू-धंसाव संकट के बीच सोमवार को पंजाब के आईआईटी-रोपड़ ने दावा किया है कि संस्थान के शोधकर्ताओं ने साल 2021 में ही दो साल के अंतराल में उत्तराखंड शहर में बड़े पैमाने पर भूमि के सतही विस्थापन की भविष्यवाणी की थी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रोपड़ में सिविल इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. रीत कमल तिवारी के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम ने मार्च 2021 की शुरुआत में जोशीमठ बाढ़ परिदृश्य के लिए ग्लेशियल विस्थापन का मानचित्रण किया था।
संस्थान की ओर से जारी आधिकारिक बयान के मुताबिक अध्ययन के दौरान डॉ. तिवारी और आईआईटी पटना में सिविल और पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर व उनके तत्कालीन पीएचडी छात्र डॉ. अक्षर त्रिपाठी ने जोशीमठ में बड़े पैमाने पर सतह विस्थापन की भविष्यवाणी की थी। उन्होंने अध्ययन के लिए सेंटिनल-1 उपग्रह डाटा का उपयोग करते हुए पर्सिस्टेंट स्कैटरर एसएआर इंटरफेरोमेट्री (पीएसआईएनएसएआर) तकनीक का इस्तेमाल किया था।
जोशीमठ शहर में इमारतों के लिए 7.5 से 10 सेमी विस्थापन के बीच की भविष्यवाणी की गई थी, जो इमारतों में बड़े पैमाने पर दरारें पैदा करने के लिए पर्याप्त है। संस्थान ने कहा कि पिछले दिनों कुछ ऐसी ही तस्वीर जोशीमठ में सामने आई है। अध्ययन 16 अप्रैल, 2021 को लखनऊ में आयोजित एक सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया था, जिसके लिए डॉ. त्रिपाठी को ”बेस्ट पेपर अवार्ड” से सम्मानित किया गया था। हालांकि इस अध्ययन को क्षेत्र के कई विशेषज्ञों ने एक धोखा और संभावित रूप से लोगों में भय पैदा करने वाला करार दिया था।
जोशीमठ शहर अभी जिस स्थिति का सामना कर रहा है और भविष्यवाणी के सच होने को देखते हुए डॉ. तिवारी ने अपनी दीर्घकालिक मांग को दोहराया है कि हिमालयी आपदाओं पर एक अंतर-आईआईटी उत्कृष्टता संस्थान स्थापित करना समय की मांग है। डॉ. तिवारी ने कहा कि यह हिमालयी आपदाओं पर अपनी तरह का पहला सफल अंतर-संस्थागत अध्ययन है। वहीं, डॉ. अक्षर त्रिपाठी ने भी इंटर-डिसिप्लिनरी और इंटर-आईआईटी संस्थान स्थापित करने की मांग की है।