शाम करीब साढ़े तीन बजे शहीद टीकम सिंह नेगी का शव घर पहुंचा। शहीद के ताबूत को देख मां मनोरमा नेगी बिलख-बिलख कर रोने लगी। बोली मेरा शेर आ गया। मैं बेटे को ट्रेनिंग के लिए मसूरी छोड़कर आई थी। मेरा बेटा बहादुर था। अब मैं बिना बच्चे के कैसे रहूंगी। बोली मैं अपने बहादुर बेटे की शहादत पर आंसू नहीं बहाऊंगी।
उन्होंने बेटे के शहीद होने पर आईटीबीपी के अधिकारियों के समक्ष नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें जवाब चाहिए कि आखिर बेटा कैसे शहीद हुआ। बिलखते हुए बोली उनके खानदान की तीन पीढ़ी फौज में रही। इस दौरान हर किसी की आंखें भर आईं। परिजनों और लोगों ने किसी तरह मां मनोरमा नेगी को ढांढस बंधाई।
बूढ़ी दादी मकानी देवी भी पोते के ताबूत को देख बिलख पड़ी। इस दौरान कई बार उन्होंने बेटे को सैल्यूट किया। इस दौरान पत्नी को ढांढस बंधाते हुए शहीद के पिता राजेंद्र सिंह नेगी बोले कि हम रोकर बेटे की शहादत को कम क्यों करें।
शहीद के पिता राजेंद्र सिंह नेगी मूल रूप से रुद्रप्रयाग जिले के सौराखाला गांव के निवासी थे। वर्षों पूर्व उनके पिता सहसपुर विकासखंड के राजावाला गांव में आकर बस गए थे। टीकम सिंह नेगी अपने खानदान के इकलौते चिराग थे।