उत्तराखंड

शिक्षा के अधिकार की तरह पर्यावरण संरक्षण भी बने कानूनी अधिकार

हरेला घी संग्रांद महाअभियान के छठवें दिन राजधानी में विकास के नाम पर काटे जा रहे पेड़ों की स्मृति में पौधरोपण कर उन्हेेेेें नमन किया गया। इस मौके पर स्मृति वन प्रवेश मार्ग पर पर्यावरण कार्यकर्ता आशीष गर्ग और आम नागरिकों द्वारा पौधे भी रोपें गए। संवाद में वक्ताओं ने वकालत की कि शिक्षा के अधिकार की तरह पर्यावरण संरक्षण भी कानूनी अधिकार बने।

पौधारोपण के बाद आयोजित संवाद सत्र में सहस्रधारा मार्ग के चौड़ीकरण के नाम पर 2057 पेड़ों के कटान के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे आशीष गर्ग ने कहा कि दून में जिनका बचपन सत्तर और अस्सी के दशक में बीता है, उनके लिए पेड़ों के बगीचे का बड़ा स्थान रहा है। दून की पहचान में पेड़ों की हरियाली का बड़ा स्थान रहा है। ऐसे में भारी भरकम पेड़ों का काटा जाना दुखदायी है। उन्होंने कहा कि सह्रसधारा रोड को एक स्मार्ट, उपयोगी और सुरक्षित रोड बनाए जाने के प्रयासों और सुझाव को पीडब्ल्यूडी की सहमति मिल गई थी लेकिन फिर इसे दरकिरनार कर दिया गया। उन्होंने कहा कि दून का सामान्य नागरिक होने के नाते वे इससे आहत हुए और जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो उन्हें न्यायालय की शरण लेनी पड़ी। वह मानते है कि शहरी पेड़ और वन न केवल ग्रीन हाउस गैस को समाहित करने का सबसे सरल जीवित इकाइयां है बल्कि शहरों को ठंडा रखने, प्रदूषण से बचाने, पानी को संचित करने, पक्षियों और दूसरे कीट पतंगों के आश्रय के लिए बचाए रखना बेहद जरूरी है। उन्होंने इस याचिका में कई सुलभ विकल्प भी सुझाए हैं। याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

आम समाज को पेड़ों के प्रति संवेदनशील होना होगा। सारिका राणा ने कहा कि इस संबंध में अधिक से अधिक लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। शिक्षा के अधिकार की तरह पर्यावरण संरक्षण भी हमारा कानूनी अधिकार होना चाहिए। कार्यक्रम में उपस्थित लोगों से जन्मदिन के मौके पर पेड़ लगाए जाने की अपील की गई। कार्यक्रम में रेनू नेगी, नीना रावत, बिमला रावत, विमला कठैत, सुनीता बहुगुणा, सुधा बहुखंडी, बृजमोहन उनियाल, साकेत रावत, किशन सिंह, प्रवीण, शैली पांथरी, बीरेंद्र खंडूरी, सुरेंद्र अमोली, इंदुभूषण सकलानी, धाद सचिव तन्मय ममगाईं आदि मौजूद थे।

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