उत्तराखंड

दुर्घटना की उड़ान भरते हेलीकाप्टर, सुनिश्चित हो सुरक्षा मानकों का पालन;

हाल ही में केदारनाथ में एक निजी कंपनी के हेलीकाप्टर की दुर्घटना के संबंध में प्रत्यक्षदर्शियों का यह मानना है कि केदार घाटी में खराब मौसम और घने कोहरे की अनदेखी इसका एक बड़ा कारण हो सकती है। इसके अलावा एक तथ्य यह है कि समुद्रतल से 11,500 फीट से अधिक ऊंचाई वाले केदार घाटी क्षेत्र में हेलीकाप्टर को एक ऐसी संकरी घाटी से होकर गुजरना होता है, जहां हवा का दबाव बहुत ज्यादा है।

ऐसे में अगर मौसम खराब हो जाए तो जरा सी चूक दुर्घटना का कारण बन सकती है। लेकिन फेरों की संख्या पूरी करने के क्रम में ज्यादातर पायलट उड़ान भरने का जोखिम उठाते हैं। ऐसे में कब कोई दुर्घटना हो जाए कहा नहीं जा सकता। यहां यह तर्क काम नहीं करता है कि उड़ानों की संख्या के अनुपात में हादसों की संख्या कम है या ऐसी दुर्घटनाएं अपवाद हैं। इसके विपरीत सच्चाई यह है कि यात्रियों के आमद के साथ-साथ उड़ानों की संख्या और दुर्घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। जहां तक केदार घाटी में हेलीकाप्टर सेवाओं की शुरुआत का संदर्भ है, तो इसका आरंभ यहां वर्ष 2004 में शुरू की गई हेलीसेवा (पवनहंस) के साथ हुआ था।

इसके बाद के वर्षों में 2006 में यहां चार हेली कंपनियों के हेलीकाप्टर उड़ान भर रहे थे। वर्ष 2014 में नौ कंपनियों, 2015 में 11, वर्ष 2016 व 2017 में 13 कंपनियों के हेलीकाप्टरों ने यात्रियों को गुप्तकाशी, फाटा और शेरसी आदि स्थानों से केदारनाथ मंदिर तक आवाजाही का काम शुरू किया। इसमें संदेह नहीं कि हेली सेवाओं के आरंभ से केदारनाथ पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में जबर्दस्त इजाफा हुआ है। चूंकि हेली कंपनियों को यात्रियों की बढ़ती संख्या से भरपूर कमाई हो रही है, इसलिए उन्होंने इसकी परवाह करना छोड़ दिया है कि वे दुर्गम घाटी में हेलीकाप्टर उड़ा रही हैं। फिलहाल केदारनाथ में नौ कंपनियां हेली सेवा दे रही हैं।

एक कंपनी का हेलीकाप्टर औसतन नौ फेरे लगाता है। साफ मौसम वाले दिन में उड़ानों के 270 फेरे हो सकते हैं, हालांकि ऐसा पूरे सीजन में कुछ ही दिन हो पाता है। पूरे सीजन का औसत 150 उड़ानें प्रतिदिन रह पाता है। डीजीसीए का वहां एक अन्य नियम यह है कि एक समय में हवा में छह हेलीकाप्टर ही रह सकते हैं। लेकिन इस नियम का शायद ही कभी पूरी तरह पालन होता है। नियमों का उल्लंघन तो पर्यावरण और वन्यजीवन संबंधी मामलों में भी हो रहा है। वन्यजीव संस्थान के मुताबिक उस क्षेत्र में हेलीकाप्टर की उड़ान जमीन से 600 मीटर ऊपर होनी चाहए और 50 डेसिबल तक शोर (ध्वनि प्रदूषण) पैदा करना चाहिए। लेकिन वास्तविकता यह है कि यहां हेलीकाप्टर ज्यादातर समय दो सौ मीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरते हैं और 100 डेसिबल का शोर पैदा करते हैं।

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